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पर्यायके प्रति कारणता द्रव्य है और कार्य दशामें वह वस्तु भाव है। विवेचनाः-तत्त्वार्थके टीकाकार कहते हैं यदि मनुष्य जीवको देव जीवका कारण होनेसे द्रव्य जीव कहा जाय तो वह द्रव्य जीव ही रहेगा वह भाव जीव न हो सकेगा, इस प्रकार संसारी जीवमें भावका निक्षेप व्यापक नहीं रहेगा । जो सिद्ध जीव भाव जीव होगा वह द्रव्य जीव न हो सकेगा। इस प्रकार निक्षेप अव्यापक रहेगा । उपाध्यायनी कहते हैं- टीकाकारजीने द्रव्य जीवका प्रतिपादन करनेवाले इस मतमें जिस रीतिसे निक्षेपकी अव्यापकता का निरूपण किया है वह उचित नहीं है । जो संसारी जीव अन्य भवके जीवका कारण हो से द्रन्य है वह भाव भी हो सकता है । एक अर्थ, कारण होनेसे द्रव्य और कार्य दशामें होनेसे भाव कहा नाय तो इसमें कोई बाधक नहीं है । जो जीव संसारी है वह अनादि पारिणामिक जीव भावसे युक्त है इसलिए भाव जीव है, देव जीवका कारण है इसलिए द्रव्य भी है । विशेषावश्यकके भाष्यकार एक अर्थमें द्रव्य और भावका प्रतिपादन करते हैं। मूलम्- केवलमविशिष्टजीवापेक्षया द्रव्यजीवत्वव्यवहार एव . न स्यात्, मनुष्यादेर्देवत्वादिविशिष्टजीवं प्रत्येक
हेतुत्वादिति । अर्थ:-इस प्रकार मानने पर केवल सामान्य जीवकी अपे
क्षासे द्रव्य जोवका व्यवहार न हो सकेगा। मनुष्य