Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 574
________________ नाम निक्षेप के मानने का कारण द्रव्य और स्थापना में भी विद्यमान है इतना ही नहीं, नाम की अपेक्षा द्रव्य और स्थापना इन्द्र पर्याय रूप भावमें अधिक निकटवर्ती हेतु हैं। इन्द्र की मूर्ति द्रव्य है और उसका विशिष्ट आकार स्थापना है । ये दोनों इन्द्र पर्याय रूप भावमें अभेद से विषमान हैं । इन्द्र की मूर्ति और उसका विशिष्ट आकार दोनों भाव इन्द्र से अलग होकर नहीं दिखाई देते, परन्तु नाम भावइन्द्र से अलग होकर प्रतीत होता है । नामका भावके साथ सम्बन्ध वाच्य-वाचकभावरूप है । द्रव्य और आकार के समान नाम सर्वथा भावके स्वरूपमें नहीं प्रतीत होता, इस लिए नामकी अपेक्षा अधिक निकट होने से ऋजुसूत्र द्रव्य और स्थापना को स्वीकार करता है। मलम्-संग्रहव्यवहारौ स्थापनावी स्त्रीभिक्षेपानिच्छत इति केचितः अर्थः-संग्रह और व्यवहार स्थापना को छोड़कर अन्य तीन निक्षेपोंका स्वीकार करते हैं- यह कुछ लोगों का मत है; विवेचना-संग्रह के अनुसार स्थापना को न माननेवाले नाम निक्षेप के द्वारा स्थापना का संग्रह कर लेते हैं । उनका अभिप्राय इस प्रकार हैभिन्न अर्थीको साधारण धर्मके द्वारा संग्रह एक कर देता है । नाम निक्षेपका स्वरूप इस प्रकारका है-जिसके द्वारा स्थापना भी नाम नक्षेपके अन्दर चली जाती है । एक नाम वर्ण रूप है, और दूसरा

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