Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 583
________________ और मनुष्य शरीरधारी हैं इस दशामें शरीरका जो आकार है वह आकार आकाररहित जीव का भी मान लिया जाता है। इन्द्र की प्रतिमा इन्द्र की बुद्धि से बनाई जाती है और वह स्थापना इन्द्र कहलाती है । इस प्रकार जीव की काई प्रतिमा बनाई जाय और उसमें जीव बुद्धि का स्थापन किया जाय तो वह प्रतिमा, देवता की हो वा मनुष्य आदिकी, स्थापना जीव है। __ औपशमिक आदि भावोंसे युक्त.जीव भाव जीव है । जीव ज्ञान स्वरूप है, कर्म पुद्गलोके उपशम आदि के कारण ज्ञानके परिणाम भिन्न प्रकारके हो जाते हैं। ये समस्त परिणाम सदा जीवमें नहीं होते परंतु कोई न कोई परिणाम अवश्य रहता है । चैतन्य आत्माका असाधारण स्वरूा है उससे रहित आत्मा कभी नहीं होता । अग्नि जिस प्रकार उष्णता से रहित नहीं होता इस प्रकार जीव कभी चैतन्यसे रहित नहीं होता। कर्म के कारण ज्ञान के परिणाम अनेक प्रकारके होते रहते हैं, इन परिणामांसे युक्त जीव भावजीव है। इस प्रकार जीवके विषयमें नाम स्थापना और भाव ये तीन निक्षेप हो सकते हैं-परन्तु द्रव्य निक्षेप नहीं हो सकता। मूलम-अयं हि तदा सम्भवेत्, यद्यजीवः सन्नायत्यां जीवो ऽभविष्यत्, यथाऽदेवः सन्नायत्यां देवो भविष्यत् (न्) द्रव्य देव इति । न चैतदिष्टं सिद्धान्ते, यतो जीवत्वमनादिनिधनः पारिणामिको भाव इष्यत इति ।

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