Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 564
________________ के बिना भी नहीं प्रतीत होते । नाम की प्रतीति तब स्पष्ट रूपसे होती है जब नाम का उच्चारण किया जाता है । उच्चारण न होने पर भी वस्तु को देखकर नाम का स्मरण अवश्य होता है । चक्षु से स्थापना-द्रव्य और भाव का प्रत्यक्ष जिस प्रकार होता है इस प्रकार नाम का प्रत्यक्ष यद्यपि नहीं होता तो भी नाम का स्मरण अवश्य होता है । किसी भी इन्द्रिय के द्वारा प्रस्यक्ष हो, नामका संबंध अवश्य रहता है । अर्थ से सर्वथा दूर रहकर नाम का अनुभव नहीं होता । अर्थ और ज्ञान जिस शब्द के द्वारा कहे जाते हैं, उसी शब्दसे नाम भी कहा जाता है। अर्थ को घट कहते हैं , उसके ज्ञान को घट का ज्ञान कहते हैं । नाम को भी घट कहते हैं। इस प्रकार सब का आकार समान है। समस्त अर्थ नाम आदि के रूपमें हैं-इसलिए नाम, स्थापना, द्रव्य भी भाव के समान वस्तु हैं, यह नाम आदि का समुदायवाद है। नाम आदिचार निक्षेप हैं इनके माननेवाले नयों का निक्षेप के वाचक शब्दों द्वारा प्रतिपादन कर के नामनय आदि का प्रयोग किया गया है, नामको मानने वाला नय नामनय, स्थापना को माननेवाला स्थापनानय कहा गया है। द्रव्यनय और भावनय शब्द का प्रयोग भी इसी रीतिसे है। जो भी वस्तु है। वह सब नाम आदि चारों के रूपमें है। आकाश के पुष्प आदि जो सर्वथा असत् हैं उनमें नाम आदि चारों का स्वरूप नहीं प्रतीत होता, अतः समस्त वस्तु नाम आदि चार पर्यायोंसे युक्त है।

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