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मूलम्-ऋजुसूत्रो नामभावनिक्षेपावेवेच्छतीत्यन्ये, तत्र(तन्न);
ऋजुसूत्रेण द्रव्याभ्युपगमस्य सूत्राभिहितत्वात, पृथकत्वाभ्युपगमस्य परं निषेधात् । तथा च सूत्रम्-"उज्जुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एग दव्यावस्सयं,
पुहत्तं नेच्छइ ति" । [अनुयो. सू.१४] अर्थ:-ऋजुसूत्र-नाम और भाव इन दो निक्षेपों को ही मानता
है इस प्रकार कुछ लोग कहते हैं । यह मत युक्त नहीं, ऋजुसूत्र द्रव्य को मानता है यह सूत्र में प्रतिपादित है । यह नय पृथक्त्व अर्थात् अनेकता को स्वीकार करता है इसी वस्तु का निषेध है। सूत्र इस प्रकार है- ऋजुसूत्र नयके मतसे एक उपयोग रहित पुरुष आगमतः एक द्रव्यावश्यक है यह नय अनेकता को नहीं मानता।
विवेचना-आगम में द्रव्य निक्षेप के दो प्रकार के भेद प्रतिपादित हैं। एक आगमसे द्रव्य है आर दूसरा नोआगमसे द्रव्य है । पदार्थ के ज्ञान को आगम कहते हैं, पदार्थज्ञान का अभाव, नो-आगम कहा जाता है । जो घट शब्द का उच्चारण करता है परन्तु घट के विषय में उपयोग से अर्थात् घट विषयक अवधान से शून्य है, वह पुरुष आगम से द्रव्य घट है । नो आगम से द्रव्यघट तीन प्रकार का है-ज्ञाताका शरीर, भावी शरीर, और इन दोनों से भिन्न मिट्टी रूप घट । घट का कारण होनेसे जिस प्रकार मिट्टी का पिंड द्रव्य घट है इसी प्रकार घटके विषय में ज्ञान रहित पुरुष भी पीछे घट विषय का ज्ञाता हो जाता है इस लिए उपयोग रहित पुरुष ओगमसे द्रव्य घट है । घट के ज्ञाता का शरीर शिला पर पड़ा