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भी रहता है। केवल वर्तमान पर्याय के साथ मुख्य रूप से संबंध होने के कारण ऋजुसूत्र का अनुगमी द्रव्य के साथ नहीं, किन्तु अननुगामी पर्याय के साथ संबंध है-यह वाद। सिद्धसेन दिवाकर के अनुगामियों का अभिप्राय है । इस मतके अनुसार नाम, स्थापना, द्रव्य, इन तीन निक्षेपों का संबंध द्रव्य स्तिक के साथ है, पर्यायास्तिक के साथ नहीं । पर्यायास्तिक नय का संबंध केवल भाव निक्षेप के साथ है। मूलम्-स्वमते तु नमस्कारनिक्षेप विचारस्थले "भावं चिय
सदणया सेसा इच्छन्ति सम्वणि क्खेवे" [२८४७] इति वचसा त्रयोऽपि शब्दनयाः शुद्धत्वाद्भावमेवेच्छन्ति ऋजुसूत्रादयस्तु चत्वारश्चतुरोऽपि निक्षेग
निच्छन्ति अविशुद्धत्वादित्युक्तम् । अर्थ:-अपने मतमें तो जहाँ पर नमस्कार के निक्षेप का
विचार किया है वहाँ शब्द नय भाव निक्षेप को ही मानते हैं और शेष नय सब निक्षेपों को मानते हैं इस वचन के द्वारा शब्द, समभिरूढ, और एवंभून ये तीनों नय केवल भाव को और ऋजुसूत्र आदि चार नय अशुद्ध होने से चारों निक्षेपों को स्वीकार करते हैं- यह कहा है। विवेचना--किसो पद के द्वारा व्युत्पत्ति के ब उसे जो अर्थ प्रतीत होता है उसके वाचक शब्द के विषय में सांप्रत, समभिरुढ और एवंभूत ये तीनों शब्दनय प्रधानरूपसे विचार करते हैं। घटन