Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 567
________________ गामी सूपसे विद्यमान है । चेतन अचेतन द्रव्यों को स्वीकार करने के कारण व्यवहार नय भी द्रव्यार्थिक का भेद है। संग्रह और व्यवहार दोनों द्रव्य का आश्रय लेते हैं । संग्रह सत् रूप द्रव्य का आश्रय लेकर भिन्न अर्थों में प्रधान रूपसे अमेद का प्रतिपादन करता है। व्यवहार द्रव्यों के भेद का निरूपण करता है-यह दोनों का मेद है। नैगम भी एक नय है पर वह आचार्य सिद्धसेन के मत के अनुसार संग्रह और व्यवहार से भिन्न नहीं है। नैगम दो प्रकार का है-एक सामान्य का बोधक है और दूसरा विशेष का । जो सामा-- न्य का प्रतिपादक नैगम है उसका संग्रह में और जो विशेष का प्रतिपादक है उसका व्यवहार में अन्तर्भाव हो जाता है । नैगम नय गौण-मुख्य भावसे गुण और गुणी के भेद और अभेद का निरूपण करता है । गुणों का आश्रय द्रव्य है उसका प्रधान और अप्रधान भावसे निरूपण गुणोंके बिना नहीं हो सकता, अतः वह भी द्रव्यार्थिकका भेद है । ऋजुसूत्र वर्तमान काल में रहनेवाली वस्तु का निरूपण करता है, अत त और अनागत पर्यायोंसे अलग कर के निरूपण करने के कारण उसमें अनुगामी स्वरूप की प्रधानता नहीं है अतः उसको आचार्य सिद्धसेन पर्याय नय का भेद स्वीकार करते हैं। इस मत को मानकर पूज्य जिनभद्रगणि महाराजने विशेषावश्यक में ऋजुसूत्र को पर्यायास्तिकके भेद-रूप में कहा है । द्रव्य जिस प्रकार वर्तमान पर्याय के साथ रहता है इस प्रकार अतीत और अनागत पर्यायों के साथ

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