Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 565
________________ [निक्षेपों का नयों के साथ योग] मूलम्-अथ नामादिनिक्षेपा नयैः सह योज्यन्ते । तत्र नामा दिवयं द्रव्यास्तिकनयस्यैवाभिमतम्, पर्यायास्तिकनयस्य च भाव एव । आधस्य भेदौ संग्रहव्यवहारौ, नैगमस्य यथाक्रमं सामान्यग्राहिणो विशेषग्राहिणश्च अनयोरेवान्तर्भावात् । ऋजुसूत्रादयश्च चत्वारो द्वितीयस्य भेदा इत्याचार्य सिद्धसेन मतानुसारेणाभिहितं । जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण पूज्य "नामाइतियं दवट्टियस्य भावो अ पज्जवणयस्स । संगहववहारा पढमगस्स सेसा उ इयरस्स ॥" इत्यादिना विशेषावश्यके । अर्थ-अब नाम आदि निक्षेपों की नयों के साथ योजना की जाती है। द्रव्यास्तिक नय, चार निक्षे. पोंमेंसे नाम स्थापना और द्रव्य निक्षेप इन तीनों को स्वीकार करता है। पर्यायास्तिक नय केवल भाव को स्वीकार करता है। प्रथम द्रव्यास्तिक के दो मेद हैं-संग्रह और व्यवहार । सामान्यग्राही नैगम का क्रमसे संग्रहनय में और विशेषग्राही नैगम का व्यवहार नय में अन्तर्भाव होता है । ऋजुसूत्र ओदि चार द्वितीय पर्यायास्तिक के मेद हैं यह वस्तु आचार्य सिद्धसेन के मत के अनुसार । पूज्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजीने विशेषावश्यक में कही है-विशेषावश्यक की गाथा इस प्रकार हैद्रव्यार्थिक नय को नाम आदि तीन अभिमत हैं और पर्यायास्तिक को केवल भाव अभिमत है । संग्रह और

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