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मान आकार के प्रतिक्षण उत्पन्न होनेवाले पर्यायों के उत्पन्न करने की शक्ति अनुगामी द्रव्य में रहती है । यह शक्ति प्रत्येक द्रव्य में है । शक्ति और शक्तिमान का अभेद है इस लिए शक्ति भी द्रव्य कही जाती है। यह शक्ति रूप द्रव्य प्रत्येक वस्तु में है । एक स्थान. पर पड़ा हुआ घट अथवा लोह भी प्रतिक्षण नये नये पर्यायों को उत्पन्न करता हैं । एक ही घट जिस प्रकार नामरूप और स्थापन रूप है इस प्रकार शक्तिरूप होने से द्रव्यरूप भी है । अतः द्रव्य के वस्तु होने में शंका नहीं हो सकती । मूलम्- भावात्मकं च सर्वं परापरकार्यक्षणसन्तानात्मकस्यैव
तस्यानुभवादिति चतुष्टयात्मकं जगदिति नामादिनयस
मुदयवाद । अर्थ-समस्त वस्तुभावात्मक है अर्थात् पर्यायरूप है. प्रत्येक
क्षण में होनेवाले पर अपर कार्योकी परम्परा के रूप में अर्थ का अनुभव होता है इस कारण समस्त जगत नाम-स्थापना-द्रव्य-और भाव इन चारों के स्वरूप में है । यह नाम आदि नयों का समुदयवाद है। विवेचना-जब भी अर्थ का अनुभव होता है तब किसी एक पर्याय के रूप में होता है। प्रत्येक अर्थ में नाम, आकार, द्रव्य और पर्याय है। प्रत्येक अथ में केवल नाम, केवल आकार, केवल द्रव्य अथवा केवल पर्याय, कहीं भी नहीं है । घट को जब देखते हैं तब आकार, अनुगामी द्रव्य, और भाव एक काल में दिखाई देते हैं, द्रव्य पर्यायों के बिना और पर्याय द्रव्य के बिना जस प्रकार नहीं प्रतीत होते । इस प्रकार द्रव्य और पर्याय आकार