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फण रहित दशा का आकार भिन्न होता है । जब वही सर्प कुंडल के समान गोल हो जाता है तब जो आकार है वह फण के नीचे
और ऊँचे होने की दशा से भिन्न होता है । इन समस्त दशाओं में सर्प का अनुगत आकर स्पष्ट प्रतीत होता है। एक ही सर्प कभी फण ऊँचा करता है और कभी नीचा । वही सर्प कभी गोल हो जाता है और कभी लम्बा । एक ही सर्प के भिन्न भिन्न आकार मूल रूप के साथ बार बार दिखाई देते हैं, इसलिए अनुगत और जो अनुगत नहीं है इस प्रकार के दोनों रूप प्रत्यक्ष होते हैं । अनुगत रूप द्रव्य है ।
अनुगामी अर्थ में भिन्न आकार के पर्यायों को प्रकट करने की जो शक्ति है वह भी द्रव्य कही जाती है। कारणभूत द्रव्य प्रत्यक्ष है और उसको पर्यायों के उत्पन्न करने की शक्ति प्रत्यक्ष नहीं है, उसका पर्यायों से अनुमान होता है । जब पर्याय समान आकार के होते हैं तब उनका अनेक दशाओं में प्रत्यक्ष कठिन हो जाता है जब अर्थ अन्य अर्थ के रूप में परिणत नहीं होता किन्तु परिणाम को प्राप्त करता है तब पर्यायों के आकार का भेद कुछ दशामों में प्रत्यक्ष नहीं होता। आजकल यन्त्रों के द्वारा पैसा आदि जो उत्पन्न होते हैं उनका आकार अत्यन्त समान होता है । यदि उनको भिन्न स्थान में रक्खा हुआ न देखा जाय तो यह पैसा भिन्न है और दूसरा भिन्न है यह नहीं प्रतीत होता। एक ही स्थान पर एक पैसे को हटाकर उसके स्थान पर दूसरा पैसा रख दिया नाय तो केवल देखने से पहले और दूसरे पैसे का मेद स्पष्ट नहीं