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जब नाम - स्थापना और द्रव्य भिन्न भिन्न वस्तुओं में होते हैं, तब उनका स्वरूप भाव का साधन होता है इस अपेक्षा से नाम आदि का वस्तु रूप में प्रतिपादन इस रीति से किया है । मूलम् - साकारं च सर्वं मति - शब्द - घटादीनामाकारवत्वात्, Arorar संस्थानविशेषादीनामाकाराणामनुभवसिद्धत्वात् ।
अर्थ :- समस्त पदार्थ आकार से युक्त हैं, वुद्धि-शब्द और घट आदि अर्थ आकार वाले हैं, नील आदि और आकृति विशेष आदि आकार अनुभव से सिद्ध हैं ।
विवेचना - बुद्धि जब विषय को प्रकाशित करती है तब विषय का जो आकार होता है उस आकार में स्वयं भी हो जाती है । सूर्य आदि का प्रकाश जब वृक्ष आदि को प्रकाशित करता है तब वृक्ष के आकार में हो जाता है । बुद्धि भी सूर्य आदि के प्रकाश के समान वृक्ष आदि की प्रकाशक है । वह भी वृक्ष आदि के आकार को धोरण करती है । ज्ञाता को जिस प्रकार बाह्य वृक्ष आदि में आकार प्रतीत होता है । इसी प्रकार ज्ञान में भो वृक्ष आदि का आकार प्रतीत होता है । यह ज्ञान वृक्ष का है और मेघ आदि का नहीं है, यह व्यवस्था भी बिना आकार के नहीं हो सकती । यदि वृक्ष के ज्ञान में वृक्ष का आकार प्रतीत न हो, तो यह ज्ञान वृक्ष का है, मेघ आदि का नहीं - इस प्रकार की व्यवस्था नहीं हो सकती । आकार विषय की व्यवस्था का नियामक है । बाह्य घट आदि वस्तु का आकार प्रत्यक्ष से सिद्ध है । शब्द
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