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भी प्रमेयरूप से किसी प्रतियोगी की अपेक्षा नहीं करते । अभाव अभावरूप से प्रतियोगी के ज्ञान की अपेक्षा करते हैं । भाव भी अपने अभाव के अभावरूप है इस रूप में भाव भी अपने अभाव की अपेक्षा करते हैं । घट घटाभाव का अभाव है इसलिये घटाभाव के ज्ञान की अपेक्षा करता है ।
यह तो हुई स्वाभावाभाव रूप में अर्थात् अपने अभाव के अभाव के रूप में प्रतियोगी के ज्ञान की अपेक्षा, भाव रूप में भी सत्त्व रूप के लिए स्व द्रव्य क्षेत्र आदिकी अपेक्षा अनुभव सिद्ध है। बिना द्रव्य आदिके किसी भी अर्थ का स्वरूप प्रतीत नहीं होता. इसलिये प्रथम भङ्ग सत्त्व को और द्वितीय भङ्ग असत्त्व को अपेक्षा से प्रकट करता है इस दशा में सत्त्व असत्त्व का और असत्त्व सत्त्व का सर्वथा विरोधी नहीं रहता।
मूलम्:-न चासत्वं काल्पनिकम् , सत्त्ववत् तस्य स्वातत्र्येणानुभवात् , अन्यथा विपक्षासत्त्वस्य तात्विकस्याभावेन हेतोस्त्ररूप्यव्याघातप्रसङ्गात् । ___ अर्थः-यदि कहो असत्त्व कल्पना से प्रतीत होता है तो यह युक्त नहीं, सत्त्व के समान असत्त्व का भी स्वतन्त्ररूप से अनुभव होता है, यदि असत्त्व केवल कल्पना द्वारा सिद्ध हो तो सत्य रूप से विपक्ष में असत्त्व के न होनेके कारण हेतु के तीन रूपों के नष्ट होनेकी आपत्ति होगी।