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॥ निक्षेपपरिच्छेदः ॥ ३-अब नाम आदि निक्षेपों का निरूपण किया जाता है। मूलम् :-नया निरूपिताः । अथ निःक्षेपा निरूप्यन्ते । प्रक
रणादिवशेनाप्रतिपत्या (त्या) दिव्यवच्छेदकयथास्थान-विनियोगाय-शब्दार्थ-रचना-विशेषा नि:
क्षेपाः। अर्थ:- नयों का निरूपण किया जा चुका है। अब निक्षे.
पोका निरूपण किया जाता है । प्रकरण आदि के द्वारा अप्रतिपत्ति आदि का, निराकरण करके उचित स्थान में विनियोग करने के लिए शब्द के पाच्य
अर्थ के विषय में रचना विशेष निक्षेप कहे जाते हैं। विवेचना-नयों के समान निक्षेपों का श्रुत प्रमाण के साथ संबंध विशेष रूपसे है। श्रुत और नयके द्वारा किसी अपेक्षा से अर्थ के प्रतिपादन की जब इच्छा होती है तब अर्थ वाच्य हो जाते हैं वाच्य अर्थों के वाचकों का भेद से प्रतिपादन निक्षेपोंका स्वरूप है । शब्द को सुनकर अर्थका ज्ञान श्रोताओं को एक रूपसे नहीं होता । जो श्रोता व्युत्पन्न नहीं होता वह अवसर पर पद के उस अर्थको नहीं जानता जिसमें वक्ता का अभिप्राय होता है। किसी श्रोताको पदों के अर्थका सामान्य रूपसे ज्ञान होता हैं पर विशेष रूपसे अर्थ को जानने की शक्ति नहीं होती। शब्द के अनेक अर्थ हैं उनमें से किस अर्थ को लेना चाहिए