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मेद होता है, इस प्रकार नाम आदिमें भी किसी रूपसे अमेद है और अन्य रूपसे मेद है-यह सिद्ध हुआ।
विवेचना:-जो धर्म वस्तुओं को भिन्न करते हैं उनकी उपेक्षा कर के समान धर्म के बल पर यदि वस्तुओं में अभेद माना जाय तो प्रमाणों से सिद्ध वस्तुओं का भेद भी नहीं रह सकेगा । गौ, घोडा, ईंट, पत्थर नदी आदि अर्थ आंख से दिखाई देते हैं। दृश्यत्व इन सबका साधारण धर्म है, इसके द्वारा यदि इन सब को अभिन्न माना जाय तो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के साथ विरोध होगा । चेतन और अचेतन का भेद अनुभव सिद्ध है वह
भो नहीं रह सकेगा। एक परिणामी द्रव्य के अनेक परिणाम होते हैं। उनमें द्रव्य को दृष्टि से अभेद होने पर भी पर्याय की अपेक्षा से भेद रहता है । वक्र दूध का परिणाम है अतः द्रव्य की अपेक्षा से तक और दूध में मेद नहीं है, पर पर्याय की अपेक्षा से इन दोनों में भेद है। तक दूध नहीं है और दूध तक नहीं है। दूध का रस मधुर है और तक का रस अम्ल है । नाम आदि का भी, संबंध आदि की अपेक्षा से अभेद समझा जा सकता है, पर उनके जो स्वरूप भिन्न हैं उनके कारण उनमें भेद है।
मूलम्-ननु भाव एव वस्तु, किं तदर्थशून्यैर्नामादिभिरिति चेत् । अर्थ-शंका-भाव केवल वस्तु है, भाव के अर्थसे शून्य नाम
आदि के द्वारा क्या लाभ है ?