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घृत को धारण करने में घट निमित्त कारण है, उपादान कारण नहीं । घट धृत के संयोगरूप में परिणत नहीं होता, निमित्त का कार्य रूप में परिणाम नहीं हो सकता । मिट्टी द्रव्य घट है, परन्तु वह घट का परिणामी कारण है निमित्त कारण नहीं । मिट्टी घटरूप को धारण कर लेती है। द्रव्य निक्षेप के लिए अर्थ को कारण होना चाहिए, परिणामी कारण हो अथवा निमित्त कारण हो, वह द्रव्य निक्षेप के रूप में हो सकता है। मूलम् :-क्वचिप्राधान्येऽपि द्रव्यनिक्षेपः प्रवर्तते यथाऽ
गारमर्दको द्रव्याचार्यः, आचार्यगुणरहितत्वात् अप्र
धानाचार्य इत्यर्थः। अर्थ-कहीं अप्रधानतामें भी द्रव्य निक्षेप प्रवृत्त होता है
जिस प्रकार अङ्गारों को मर्दन करनेवाला द्रव्याचार्य कहा गया है। आचार्य के गुणोंसे रहित होनेके कारण अप्रधान आचार्य है यह द्रव्य पदका यहाँ पर अभिप्राय है। विवेचना-अंगार मर्दक की कथा इस प्रकार है--
गर्जनक नामके नगर में एक बार विजयसेन नामक आचार्य आये। उन्होंने एक दिन अपने शिष्यों से कहा आज एक आचार्य आयेगा पर वह भव्य नहीं हैं । उनके कहते कहते रुद्रदेव नाम के आचार्य अपने साधुओं के परिवार के साथ वहाँ पहुँचे । उसकी परीक्षा के लिए साधुओं ने प्रश्रवण भूमि में अंगारे डाल दिये । जब अतिथि साधु बाहर निकले और पैरों से आघात होने के कारण "किस-किस" शब्द हुआ तो वे मिथ्या दुष्कृत कहकर लौट गये ।