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चिन्तन कर रहा है उमकी पूजा भी द्रव्य क्रिया है । वह मोक्ष का साक्षात् कारग नहीं है । जिनेन्द्र के राग-द्वेष आदिसे रहित स्वरूप का एकाग्र चित्त के द्वारा चिंतन न हो तो साधक के राग-द्वेष आदि दोष क्षीण नहीं होते, इस कारण उसको मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकता।
जो एकाग्र चित्तसे भक्तिके साथ पूजा करता है पर विधि के साथ नहीं करता अथवा पुत्र ऐश्वर्य आदि को कामनासे करता है उसकी पूजा भी द्रव्य पूजा है । विधि के बिना पूजा यदि भक्ति के साथ भो को जाय तो वह राग आदि के नाश में प्रधान रूपसे साधन नहीं रहती। परंपरा के द्वारा मोक्ष का साधन होने के कारण वह अप्रधान द्रव्य रूप हो जाता है। लौकिक फल का अभिलाषी भक्त पुत्र मादि फल प्राप्त कर के संसार में रह जायगा । उसको मोक्ष न मिलेगा। यदि वह राग आदि के क्षय के लिए भक्ति करे तो विधि के अनुसार न होने पर मो पूना परंपरासे माक्ष का कारण हो सकती है । विधि के विरोध का जो दोष है वह भक्ति के कारण निरंतर आनेष्ट फल की उत्पत्ति में असमर्थ हो जाता है। आचार्यों के इस अभिप्राय के अनुसार विधि रहित और भक्ति सहित पूजा भी द्रव्य पूना है।
मूलम् :-विवक्षितक्रियानुभूतिविशिष्टं स्वतत्त्वं यनिक्षिप्यते स
भावनिःक्षेपः, यथा इन्दनक्रियापरिणतो भावेन्द्र इति ।