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प्रकार का धर्म नहीं है, जो स्थापना में हो पर नाम और द्रव्य में न हो। ___ द्रव्य भी जहाँ नाम स्थापना और द्रव्य है वहाँ विद्यमान रहता है । द्रव्य हो तो उसका नाम धरा जा सकता है । स्थापना भी द्रव्य की होती है । जो द्रव्य है वह द्रव्य है ही, वहाँ द्रव्य के होने में कोई संदेह नहीं हो सकता । मृत् पिंड को घट द्रव्य कहा जाता है । वह द्रव्य रूप से विद्यमान है । जो द्रव्य है उसमें द्रव्य को अविद्यमान नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार का कोई स्वरूप इन तीनों में नहीं है, जो इनमें से एक में हो और अन्य में न हो।
मूलम् :-न, अनेन रूपेण विरुद्धधर्माध्यासाभावेऽपि रूपान्त
रेण विरुद्धधर्माध्यासात्तद् भेदोपपत्ते । तथाहिनामद्रव्याभ्यां स्थापना तावदाकाराभिप्रायबुद्धिक्रिया, फलदर्शनाद् भिधते, यथाहि स्थापनेन्द्रे लोचन सहस्राद्याकारः, स्थापनाकर्तुश्च सद्भुतेन्द्राभिप्रायो द्रष्टुश्च तदाकारदर्शनादिन्द्रबुद्धिः, भक्तिपरिणतबुद्धीनां नमस्करणादि क्रिया, तत्फलं च पुत्रोत्पत्यादिकं संवीक्ष्यते, न तथा नामेन्द्रे द्रव्येन्द्रे चेति ताभ्यां तस्य भेद ।
अर्थ:- आपका कथन युक्त नहीं, इस रूपसे विरुद्ध धर्मों का संबंध न होने पर भी अन्य रूपके द्वारा विरोधी