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और इनके कार्य भिन्न हैं । जहाँ इन्द्र की स्थापना होती है उस काष्ठ में वा पत्थर में सहस्र नेत्र और हाथ आदि का आकार देखा जाता है । जो स्थापना करता है उसका अभिप्राय मत्य इन्द्र में होता है । स्थापना को देखकर इन्द्र का ज्ञान होता है, इन्द्र समझकर लोग प्रतिमा को प्रणाम करते हैं, भक्ति करनेवालों को उसके द्वारा धन पुत्र आदि का लाभ भी होता है । यह सब जो केवल नाम से इन्द्र है उसके द्वारा नहीं होता । इसी प्रकार जो कभी इन्द्र रह चुका है अथवा किसी आगामी काल में इन्द्र बनेगा उसके द्वारा भी ये फल नहीं प्राप्त होते । इन्द्र का आकार भी द्रव्य इन्द्र में नहीं होता । इस लिए उसको देखकर इन्द्र की बुद्धि उत्पन्न नहीं होती, इस लिए नाम और द्रव्य से स्थापना का
___केवल संबंध के कारण अथवा समान कार्य के कारण विलक्षण अर्थ मेदसे रहित नहीं हो सकते । जब अश्व पर पुरुष बैठता है तब दोनों का संयोग होता है। पर इतने से दोनों का भेद दूर नहीं हो जाता । रथ में घोडा जुतकर मनुष्य को एक स्कनसे दूसरे स्थान पर ले जाता है । कभी कभी मनुष्य भो रथ में जुतकर किसी किसी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है। परन्तु इस कारण घोडे और मनुष्य का भेद दूर नहीं हो जाता । नाम-स्थापना और द्रव्य की जातियाँ भिन्न हैं, उनका मेद केवल संबंध होने से दूर नहीं हो सकता। जो नाम से इन्द्र है और जो द्रव्य इन्द्र है, वे दोनों इन्द्र के विषय में ज्ञान उत्पन्न करते हैं, पर इस समानता में भी मेद है । द्रव्य इन्द्र को