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धिपति के जिस प्रसिद्ध ऐश्वर्य गुण की प्रतीति होती है उसकी अपेक्षा नहीं की जाती है । जब किसी अर्थ में डित्थ आदि शब्दों का संकेत किया जाता है तब भी वाच्य अर्थ के गुणों की अपेक्षा नहीं की जाती । इन्द्र शब्द द्वारा ऐश्वर्य रूप गुण वाध्य है और डित्थ आदि पद का वाच्य कोई भी गुण नहीं है । इतना भेद होने पर भी गुणों की अपेक्षा के विना केवल संकेत की अपेक्षा दोनों प्रकार के नाम निःक्षेपों में है । इस प्रकार की अपेक्षा नाम निःक्षेप का असाधारण स्वरूप है। मूलम् :- तत्त्वतोऽर्थनिष्ठा उपचारतः शब्दनिष्ठा च । मेवा
दिनामापेक्षया यावद्रव्यभाविनी, देवदत्तादिना
मापेक्षया चायावद्रव्य भाविनी, अर्थ:- वास्तव में यह परिणति अर्थनिष्ठ है और उप.
चार से शब्दनिष्ठ है। मेरु आदि नामों की अपेक्षा से यह परिणति यावद् द्रव्य भाविनी है देवदत्त आदि नामों को अपेक्षा से यह अयावद्राव्य
भाविनी है। विवेचन:-नाम वा अर्थके परिणाम को नाम निःक्षेप . कहा गया है, परन्तु परिणाम अर्थ में स्पष्ट है नाम में नहीं, तो भी उपचार से शब्द में कहा गया है । शब्द वाचक है और अर्थ वाच्य है इस कारण शब्द में अर्थ का अभेद मान लिया गया है और अर्थ के परिणाम को शब्द में कहा गया है। नाम निः क्षेप दो प्रकार का है। एक वह है जो जब तक वाच्य द्रव्य