________________
प्रतिमाद्यपेक्षया
स स्थापना
प्रतिमा
मूलम् :-यत्तु वस्तु तदर्थवियुक्तं तदभिप्रायेण स्थाप्यते
चित्रादौ तादृशाकारम्, अक्षादौ च निराकारम् , चित्राद्यपेक्षयेत्वरं नन्दीश्वरचैत्यप्रतिमाद्यपेक्षया च यावत्कथिकं स स्थापना निःक्षेपः, यथा जिन प्रतिमा स्थापना जिनः, यथा चेन्द्रप्रतिमा स्थाप
नेन्द्रः। अर्थ:- जो वस्तु उस अर्थ से रहित हो और उसके अभि
प्राय से स्थापित हो वह स्थापना निक्षेप है। चित्र आदि में वह उस वस्तु के समान आकारवाला होता है और अक्ष आदि में आकार रहित होता है। चित्र आदि की अपेक्षा से वह अल्प काल तक स्थिर रहनेवाला होता है और नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यों को प्रतिमा की अपेक्षा से यावत्कथिक होता है। जैसे जिन प्रतिमा स्थापना जिन
है और इन्द्र की प्रतिमा स्थापना इन्द्र है। विवेचनः-दो अर्थों में भेद होने पर एक में जो अन्य के अभेद का आरोप किया जाता है वह स्थापना है। मनके द्वारा भेद में अभेद का आरोप होता है । यह अभेद का आरोप स्थापना का मूलभूत तत्त्व है । अभेद का आरोप कहीं पर समान आकार को लेकर किया जाता है और कहीं पर आकार के समान न होने पर भी किया जाता है। गौ अथवा मश्व के आकार को काष्ठ में पत्थर में वा पत्र में देखकर कहा जाता है 'यह गौ है, यह अश्व है ।' देखने वाला काष्ठ आदि के और गौ आदि के