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की सिद्धि कर सकेगा । इस रीतिसे निक्षेप वाच्य अर्थ के निश्चय में कारण बनते हैं । मूलम् :-मङ्गलादि पदार्थ निःक्षेपान्नाममङ्गलादिविनियोगोप
पत्तेश्च निःक्षेपाणां फलवत्त्वम्, तदुक्तम्-"अप्रस्तुता
र्थापाकरणात् प्रस्तुतार्थव्याकरणाच्च निःक्षेपः फलवान्" [
] इति । . अर्थः- मङ्गल आदि पदार्थों के निक्षेप से नाम मङ्गल आदि
का विनियोग होने के कारण निक्षेप फलवान है। कहा है-"जिसका प्रकरण नहीं है उस अर्थ को हटाने से और जिस अर्थ का प्रकरण है उसका
निरूपण करने से निक्षेप फल वाला है। विवेचन:-मंगल के विषय में निक्षेपों के द्वारा नाम मङ्गल आदि का उचित विनियोग निक्षेपों के फल को प्रकाशित करने के लिए उदाहरण है । नाम आदि निक्षेपों के भेद से मङ्गल चार प्रकार का है-नाम मङ्गल, स्थापना मङ्गल, द्रव्य मङ्गल
और भाव मङ्गल । जो वस्तु मङ्गल स्वरूप नहीं है पर उसका मङ्गल नाम रख दिया है वह वस्तु नाम मङ्गल कही जाती है जिन वर्णों का उच्चारण करके मङ्गल पद बोला जाता है, अथवा जिन वर्गों को लिखकर मङ्गल पद लिखा जाता है उन वर्गों का समूह भी नाम मङ्गल है । स्वस्तिक आदि का चित्र लोक में मंगल रूप माना जाता है । वह स्थापना मङ्गल है। जिसको किसी काल में मंगल शब्द के वाच्य अर्थ का ज्ञान था और उस ज्ञान से