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होती है । इस अवसर पर जिस को सैन्धव पद के नाम, स्थापना द्रव्य और भाव निक्षेपों का ज्ञान हो गया है, वह भोजन का अवसर है वा बाहर जाने का, इस वस्तु को शीघ्र जान लेता है । निक्षेप के अनुसार जिसने जान लिया है सैन्धव शब्द का यहाँ पर भावनिक्षेत्र अश्व है अथवा लवण है । उसको अश्व वाच्य है अथवा लवण इस प्रकारका संदेह नहीं होता |
जो नाम ही नहीं स्थापना सैन्धव को और द्रव्य सैन्धय को जानता है उसको उसी भाव सैन्धव का ज्ञान होता है जो - स्थापना और द्रव्य के प्रतिकूल नहीं होता । अश्व के आकार को स्थापना सैंधव और अश्व के शरीर को जो द्रव्य सैंधव समझता है वह चेतन अश्व को भाव सैन्धव समझेगा । लवण उसके लिए भाव सैन्धव नहीं हो सकता एक ही अर्थ छे विषय में नाम आदि चार निक्षेप किये जाते हैं । स्थापना और द्रव्य निक्षेप अश्व के विषय में हो और भाव निक्षेप लवण के विषय में हो, यह नहीं हो सकता । स्थापना और द्रव्य निक्षेप के द्वारा जिसने सैन्धव को अश्व प्राणी के रूपमें जाना है वह अश्व को ही भांब निक्षेप के रूप में मानेगा । वह जब सुनेगा ' सैन्धव लाओ' तो स्थापना — द्रव्य और भाव निक्षेप के अनुसार अश्व को समझ लेगा। प्रकरण के ज्ञान की अपेक्षा नहीं करनी पड़ेगी । यदि करनी भो पडेगी तो प्रकरण का ज्ञान निक्षेपों के अनुसार शीघ्र हो जायेगा । जिस में अभिप्राय है उस अर्थ को समझ लेने से योग्य विनियोग हो सकेगा । वक्ता अश्व को लेकर अपने कार्य
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