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विवेचनाः- सामान्य और विशेष का, द्रव्य और पर्याय का नित्यत्व और अनित्यत्व आदि का प्रतिपादन नैगम गौण मुख्य भाव से करता है। जहां पर नैगम सामान्य का प्रधान भाव से और विशेष का गौण भाव से प्रतिपादन करता है वहां पर नेगम का और संग्रह का विषय समान हो जाता है। जहां पर विशेष का प्रधान रूप से और सामान्य का गौण रूप से प्रकाशन होता है वहां पर व्यवहार और नैगम का विषय समान हो जाता है। ध्यान में रखना चाहिए, जब नैगम सामान्य अथग विशेषका प्रतिपादन करता है तब सामान्यके अनुगामी स्वरूपका और विशेषके केवल व्यक्तिमें रहनेवाले स्वरूपका प्रकाशन नहीं करता। वह मुख्य रूप से सामान्य और विशेष के गौण मुख्य भावका आश्रय लेकर प्रकाशन करता है। सामान्य रूप अथवा विशेष रूप वस्तु होती है, केवल इतनेसे संग्रह अथवा व्यवहार के साथ विषय समान होता है। जब नैगम · जीव में चैतन्य सत् है' इस प्रकार सत्त्व और चैतन्य इन दो पर्यायों का मुख्य और गौण भावसे प्रतिपादन करता है तब सत्त्वक अनुगामी होने पर भी उसके अनुगामी स्वरूपका प्रतिपादन नहीं करता। किन्तु चैतन्य के साथ सत्त्वका केवल सम्बन्ध प्रकट करता है। इसलिए सत्त्वरूप तिर्यक सामान्य का प्रतिपादन होने पर भी नेगम का संग्रह से स्पष्ट भेद है। जब नैगम विषय में आसक्त जीव क्षण भरके लिए सुखी होता है। इस प्रकार प्रतिपादन करता है तब सुखरूप धर्मात्मक पर्याय का प्रतिपादन करने पर भी सुख के व्यक्तिमय विशेष रूपका निरूपण नहीं करता। सुख एक पर्याय विशेष है। इस तत्त्वकी ओर नैगम का ध्यान नहीं है वह केवल सुख को विशेषण रूप से और जीव को विशेष्य रूप से प्रतिपादन करने में ध्यान देता है। सुख एक पर्याय रूप व्यक्ति विशेष है इतने से व्यवहार और नैगम का विषय सर्वथा समान नहीं हो जाता।
सुख रूप धर्म से विशिष्ट धर्मी जीव का प्रतिपादक