________________
विवेचनाः- व्यवहार नय जब किसी भाव के अवान्तर भेदों को प्रकाशित करता है तो नियत जाति के ही भेदों को प्रकाशित करता है। संग्रह नय किसी विशेष जाति के अर्थों को नहीं प्रकाशित करता किन्तु व्यापक सामान्य धर्म के अनुसार अधिक अर्थों का संग्रह करता है। पृथ्वीत्व सामान्य धर्म से वृक्ष, ईट, पत्थर, घट, पट आदि का ज्ञान संग्रह नय के अनुसार है । यदि पाषाणत्व धर्म को लेकर समस्त पाषाणों का प्रतिपादन किया जाय तो पाषाणत्व के द्वारा वक्ष आदि का संग्रह नहीं हो सकता। पृथिवीत्व के द्वारा ईट पत्थर, वृक्ष आदि समस्त भेदों का प्रतिपादन है इसलिए उसका विषय अधिक है और वह संग्रह नय है। पाषाणत्व के द्वारा केवल पत्थरों को लिया जा सकता है वृक्ष आदि को नहीं इसलिए उसका विषय अल्प है और वह व्यवहार नय है।
मूलम्:- वर्तमान विषयावलम्बिन ऋजुपूत्रात्कालत्रितयवर्त्यर्थजातावलम्बी व्यवहारो बहु विषयः ।
अर्थः- ऋजुसूत्रनय केवल वर्तमान काल के विषय का ग्रहण करता है और व्यवहार तीन काल के अर्थों का प्रतिपादन करता है इसलिए व्यवहार का विषय ऋजुसूत्र से अधिक है।
विवेचनाः- लोगों का व्यवहार किसी एक काल को लेकर नहीं चल सकता। भूतकाल में जिन अर्थों के द्वारा सुख दुःख का अनुभव हो चुका है उन अर्थों को वर्तमान काल में देखकर अनुमान होता है ये अर्थ पहले जिस प्रकार से सुख दुःख उत्पन्न करते थे इसी प्रकार अब भी और आगामी काल में भी सुग्वादि उत्पन्न कर सकते हैं। यह समझकर लोग सब प्रकार का व्यवहार करते हैं। यदि भूतकाल के साथ अर्थ का सम्बन्ध किसी प्रकार से भी न माना जाय तो कोई भी व्यवहार नहीं चल सकता। केवल वर्तमान काल में अर्थ की सत्ता मानी जाय तो भोजन से तृप्ति होगी और पानी पीने से प्यास