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मानता । इसके विपरीत शब्द नय, काल और कारक आदि के भेद से अर्थ में भेद मानता है । एक ही वृक्ष अतीत काल के साथ जब सम्बन्ध रखता है तब वह भिन्न है और जब वह वर्तमान में है तब वह वृक्ष वही नहीं है जो भूतकाल में था । काल ही नहीं कारक आदि के भेद से भी शब्दनय अर्थ को भिन्न मानता है इसलिए शब्द नय का विषय अल्प है और तीन काल के साथ रहनेवाले अर्थों का प्रकाशक होने के कारण ऋजुसूत्र का विषय बहुत है ।
मूलम्:- न केवलं कालादि भेदेनैवर्जुसूत्रादल्पार्थता शब्दस्य, किन्तु भावघटस्यापि सद्भावा सद्भावादिनाऽर्पितस्य स्याद् घटः स्यादघट इत्यादिभङ्गपरिकरितस्य तेनाभ्युपगमात् तस्यर्जुसूत्राद् विशेषिततरत्वोपदेशात् ।
अर्थः- काल आदि के भेद से अर्थ में भेद मानने के कारण ही शब्द नय ऋजुसूत्र से अल्प विषयवाला नहीं है किन्तु सद्भाव और असद्भाव की विवक्षा से कथंचित् घट और कथंचित् अघट इत्यादि भङ्गों के साथ भाव घटको मानने के कारण भी अल्प विषय वाला है, इस रीति से शब्द नय ऋजुसूत्र की अपेक्षा अधिक विशिष्ट अर्थात् अधिक संकुचित अर्थ का प्रतिपादन करता है ।
विवेचनाः- शब्द नय के अनुसार शब्द का अर्थ प्रधान है, इस कारण शब्द के द्वारा प्रतीत होनेवाला अर्थ जिस वस्तु में हो सके उसको शब्द नय वास्तव में सत्य मानता है । घट धातु से घट नाम की उत्पत्ति है । घट धातु का अर्थ चेष्टा है । जल का लाना आदि क्रिया यहां पर चेष्टा है । जिस के द्वारा जल लाया जा सकता है वह मिट्टी का बना घडा भाव घट है और वही शब्द नय के अनुसार सत्य है । नाम घट स्थापना घट अथवा द्रव्य घट शब्द नय के अनुसार सत्य रूप से घट नहीं हैं । नाम आदि घटों से पानी
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