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चलती हुई गौ, गौ कही जाती है इसी प्रकार सोई वा बैठी गौ भी गौं शब्द का वाच्य है। इस रीति से समभिरूढ नयका विषय एवंभूत की अपेक्षा अधिक है।
इसी प्रकार एवंभूत नय जब राजा छत्र चामर आदि की शोभा से युक्त होता है, तभी उसको राजा पद से कहने योग्य मानता है। छत्र आदि के द्वारा जब शोभा न हो रही हो तब वह राजा नहीं कहा जा सकता । परन्तु समभिरूढ नय छत्र आदि के साथ और छत्र आदि के बिना भी 'राज' पदका व्यवहार करता है। यहाँ भी समभिरूढ नयका अधिक विषय स्पष्ट है।
मूलम:- नयवाक्यमपि स्वविषये प्रवर्तमान विधिप्रतिषधाभ्यां सप्तभङ्गीमनुगच्छति, विकलादेशत्वात् परमेतद्वाक्यस्य प्रमाणवाक्याद्विशेष इति द्रष्टव्यम् । ____ अर्थः- नय वाक्य भी अपने विषय में जब प्रवृत्त होता है तब विधि और निषेध के द्वारा सप्तभङ्गी को प्राप्त होता है । नय वाक्य विकलादेश है इसलिए प्रमाण वाक्य से इसका भेद है।
विवेचनाः- किसी भी नयके पाक्य को लेकर सप्तभङ्गी की प्रवृत्ति हो सकती है। इस विषय में दो प्रकार हैं। एक प्रकार के अनुसार एक भङ्ग एक नयके अनुसार प्रवृत्त होता है तो विरोधी नयके अनुसार अन्य भङ्ग प्रवृत्त होता है । इस अपेक्षा से विचार करने पर नैगम और संग्रह परस्पर विरोधी नय हैं। नैगम से यदि अस्तिका अर्थात् सत्त्व का प्रतिपादन होगा तो संग्रह से नास्ति अर्थात् असत्त्वका प्रतिपादन होगा। इसी प्रकार परस्पर विरोधी नेगम और व्यवहार अथवा नैगम और ऋजुसूत्र अथवा नैगम और शब्द अथवा