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घट कथंचित् सत् ही नहीं है। इसी प्रकार शब्द नयका आश्रय लेकर निषेध की कल्पना होती है। काल, कारक आदि के भेद से अर्थ भिन्न दिखाई देते हैं। वर्तमान में जो अर्थ है वही अतीत और अनागत में नहीं है। अतीत और अनागत की अपेक्षा से घट कथंचित् असत् भी है । यदि काल आदि के भेद से अर्थ में भेद न हो तो काल आदि का भेद ही नहीं सिद्ध हो सकेगा। समभिरुढ का आश्रय लेकर भी निषेध की कल्पना हो सकती है। घट सत् ही नहीं हो सकता। घट शब्द द्वारा जब कहा जाय तब घट है पर जब कलश अथवा कुंभ शब्द से कहा जाय तो घट नहीं है। घट और कुंभ में भेद है यदि पय यों के भेद से अर्थ में भेद न हो तो अर्थ का वाचक एक ही शब्द हो जाना चाहिए। इसलिए भिन्न पर्याय को लेकर घट कथंचित असत् भी है । इसी प्रकार एवं भूत का आश्रय लेकर घट का निषेध हो सकता है जिस काल में घट से जल लाया जा रहा है तभी घट है पर जब जल नहीं लाया जा रहा तब वह घट नहीं कहा जा सकता। अतः एवंभूत नयके अनुसार घट कथांचित् असत् भी है इस रीति से संग्रह के द्वारा सत्त्व और व्यवहार आदि के द्वारा असत्त्व का प्रतिपादन होने के कारण घट रूप अर्थ में प्रथम और द्वितीय भङ्ग हो जाते हैं।
इसके अनन्तर संग्रह व्यवहार अथवा संग्रह ऋजुसूत्र आदि दो नयोंके आश्रय से क्रम के साथ सत्त्व और असत्त्व का प्रतिपादन करने पर तीसरा उभय भङ्ग होगा । यदि दो दो नयोंका आश्रय लेकर बिना क्रम के सत्त्व और असत्त्व के प्रतिपादन की इच्छा हो तो चौथ अवक्तव्य भङ्ग का उदय होगा। विधि के प्रयोजक संग्रह नयका और निषेध के प्रयोजक नयोंका आश्रय लेकर एक साथ सत्त्व और असत्त्व के निरूपण की इच्छा हो तो पांचवा अस्ति अवक्तव्य भंग बन जायगा। प्रतिषेध के प्रयोजक नयका आश्रय लेकर और साथ ही