________________
५८
पर भी द्रव्य के साथ उनका अभेद रहता है। पर्याय कभी द्रव्यसे सर्वथा शून्य नहीं हो सकते । द्रव्य का सूक्ष्म पर्याय स्थूल पयोयों के समान न दिखाई देने पर भी द्रव्य में होता रहता है । इस प्रकार के पर्याय इन्द्रियों से अगम्य भी होते हैं । इन सूक्ष्म पर्यायों के बिना द्रव्य कभी नहीं रहता इसलिए वन्तु का स्वभाव द्रव्यात्मक और पर्यायात्मक है।
बौद्ध, द्रव्य और पर्याय के प्रमाण सिद्ध होने पर भी पर्यायों को मान लेता है और अनुगामी द्रव्य का निषेध करता है । उसका कहना है कोई अर्थ अनुगामी नहीं है । यदि तीन कालों में द्रव्य की स्थिति हो तो जब किसी अर्थ का प्रत्यक्ष होता है तब नाश के काल तक रहनेवाला वस्तु का जो स्वरूप है वह देखते ही स्पष्ट रूप से एक क्षण में प्रतीत हो जाना चाहिए । परन्तु जिस क्षण में देखते हैं उस क्षण में अथ का वहीं स्वरूप प्रत्यक्ष होता है जो उस क्षण में विद्यमान होता है। अतीत क्षणों में जो अर्थ के जो स्वरुप थे और अनागत क्षणों में जो स्वरूप होंगे उन सबका प्रत्यक्ष नहीं होता। एक क्षण में जन्मसे लेकर नाश तक के पर्यायों का और उन पर्यायों में रहनेवाले अनुगामी द्रव्य का प्रत्यक्ष जिस प्रकार असंभव है इस प्रकार अनेक क्षणों में भी क्रमसे प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । ज्ञान पर्यायों का प्रकाशक है। ज्ञान स्वयं क्षणिक है वह अपनी उत्पत्तिसे पूर्व काल के और अपने विनाश के अनन्तर होने वाले पर्यायों को प्रकाशित नहीं कर सकता । पर्यायों का अनुभव न होने पर उनके साथ अभेद से रहने वाले द्रव्य का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता।
___ परन्तु यह कथन युक्त नहीं है । ज्ञान भी सर्वथा क्षणिक नहीं है। ज्ञान का पर्याय नष्ट होता है वह सर्वथा नष्ट नहीं होता उसका कुछ भाग रह जाता है । ज्ञान के उत्पाद और विनाशवाले पर्यायों में ज्ञानात्मक द्रव्य स्थिर रहता है, यही स्थिर ज्ञान आत्मा है और वह अर्थों के उत्पाद और नाश के समान अनुगत रूप को भी स्थिर रूप