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साथ सम्बन्ध था इस बस्तु की ओर उपेक्षा कर देता है ।
काल ही नहीं कारक और लिङ्ग आदि का भेद होने पर भी शब्द नय जब एकान्त रूप से अर्थ के भेद को केवल मानने लगता है तब शब्दाभास हो जाता है ।
मूलम्: - पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षी कुर्वाणः समभिरूढाभासः, यथा इन्द्रः शक्रः पुरन्दरः इत्यादयः शब्दा भिन्नाभिधेया एव भिन्नशब्दत्वात् करिकुरंगशब्दवदिति ।
अर्थ - पर्याय शब्दों में अर्थ के भेद को ही स्वीकार करने वाला समभिरूढाभास होता है । जैसे इन्द्र, शक्र पुरन्दर इत्यादि शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न ही है, भिन्न शब्द होनेसे करी कुरङ्ग शब्द के समान ।
विवेचनाः- करी शब्द का अर्थ हाथी और कुरंग शब्द का हरिण है । इसी प्रकार अनेक शब्द हैं जिनके अर्थ भिन्न हैं । शब्द के भेद से अर्थ के भेद को देखकर जब नियम बना लिया जाता है 'जहां शब्दों का भेद है वहां अर्थों का भेद है ।' तब वस्तु का स्वरूप अयुक्त हो जाता है । इस प्रकार के अनेक शब्द हैं जो एक अर्थ के वाचक होते हैं । एक अर्थ में अनेक धर्म रहते हैं उनमें से किसी एक धर्म का प्रकाशन एक शब्द करता है तो दूसरा शब्द उसी एक अर्थ के अन्य धर्म का प्रतिपादन करता है । एक धर्मी का प्रतिपादन करने वाले अनेक शब्द हो सकते हैं । वस्तु के इस स्वरूप का जब एकान्तवाद के द्वारा निषेध किया जाता है तब समभिरूढ नयाभास होता है । पर्याय शब्द अर्थ के भिन्न धर्मों को कहते हैं, भिन्न धर्मियों को नहीं ।
मूलम्: – क्रियानाविष्टवस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपन्नेवंभूताभासः, यथा विशिष्टचेष्टाशून्यं घटाख्यं वस्तु न