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अद्वैतवादी अनेक प्रकार के हैं। ये सब एकान्त रूप से सामान्य धर्मका प्रतिपादन करते हैं तः मिथ्या हैं । वृक्ष सूर्य चन्द्र आदि में, रूप रस आदि में और अन्य अर्थों में सत्ता प्रतीत होती है परन्तु वह बिना विशेष के नहीं प्रतीत होती। दोनों की प्रतीति समान है अतः एकान्त रूपसे सत्त्वको स्वीकार करके विशेषों का निषेध क है । सत्य अर्थ भी एकान्त का आश्रय लेकर जब प्रमाणों से सिद्ध अन्य अर्थों का निषेध करता है तो वह मिथया हो जाता है। अद्वैतवादी भी किसी एक वस्तु को लेकर उससे भिन्न अर्थों को मिथया कहने लगते हैं।
__ सत्ताके अद्वैत के समान कुछ लोग ज्ञान के अद्वैत को और कुछ लोग ब्रह्म के अद्वैत को और कुछ लोग शब्द के अद्वैत को मानते हैं । इनमें ज्ञान के अद्वैत को माननेवाले विज्ञानवादी बौद्ध हैं। इन लोगों के अनुसार जब भी अर्थों का ज्ञान होता है तब ज्ञान अवश्य विद्यमान होता है। ज्ञान के बिना किसी भी अर्थका प्रकाशन नहीं होता। ज्ञान दो प्रकार का है, एक सत्य ज्ञान जिसके द्वारा प्रकाशित अर्थ प्राप्त हो सकते हैं । पुस्तक को देखकर पुस्तक का ज्ञान होता है। उसको लेकर पढा जा सकता है । यह ज्ञान सत्य ज्ञान है पुस्तक और पुस्तक का ज्ञान दोनों सत्य हैं । प्रकाश के समान ज्ञान अर्थों का प्रकाशक है। प्रकाश और उसके द्वारा प्रकाशित अर्थ जिस प्रकार सत्य हैं इसी प्रकार ज्ञान के द्वारा प्रकाशित अर्थ और ज्ञान सत्य हैं, कभी कभी अर्थ के न होने पर भी ज्ञान हो जाता है। शुक्ति होता है और ज्ञान रजत का होता है इस ज्ञानके अनन्तर रजत की प्राप्ति नहीं होती इसलिए यह मिथ्या ज्ञान है । इस प्रकार के मिथ्याज्ञानों को लेकर विज्ञानवादियों ने समस्त ज्ञानों को मिथया मान लिया। उन्होंने कहा, जिस प्रकार रजत न होने पर भी प्रतीत होता है इसी प्रकार पुस्तक, सूर्य, चन्द्र, भूमि आदि समस्त अर्थ भी न होते हुए प्रतीत होते हैं इसलिए ज्ञान केवल सत्य है और अर्थ मिथ्या है।