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प्रतिपादन होता है तो सकलादेश हो जाता है और जब काल आदि के द्वारा धर्मों में भेद का आश्रय लेकर वस्तु का निरूपण होता है तो विकलादेश होता है।
-: नयाभासोंका निरुपण :मूलम्:- अथ नयाभासाः । तत्र द्रव्यमात्रगाही पर्यायप्रतिक्षेपी द्रव्यार्थिकाभासः । पर्यायमात्रग्राही द्रव्यप्रतिक्षेपी पर्यायार्थिकामासः। ___ अर्थः- अब नयाभासों का आरंभ होता है। उनमें जो केवल द्रव्य का ग्रहण करता है और पर्यायका निषेध करता है वह द्रव्यार्थिकाभास है । जो केवल पर्यायका ग्रहण करता है और द्रव्य का निषेध करता है वह पर्यायार्थिकाभास है।
विवेचनाः- द्रव्य पर्यायों को व्याप्त करते हैं और पर्याय द्रव्यों को। जो वचन केवल सत्ता का प्रतिपादन करता है और द्रव्य, गुण आदिका निषेध करता है वह वचन द्रव्यार्थिकाभास है। विशेषण के बिना सामान्य की सत्ता नहीं होती विशेषों में सामान्य प्रतीत होता है। इसी प्रकार पर्याष, बिना सामान्य के नहीं रह सकते । अनेक प्रकार के जितने पुष्प होते हैं उनमें पुष्प सामान्य है। जहां पुष्प सामान्य प्रतीत होगा वहाँ विशेष पुष्प भी आवश्यक रूप से प्रतीत होगा। विशेषों के बिना सामान्य और सामान्य के बिना विशेष आकाश पुष्प के समान असत है। पर्यायों में अनुगत सामान्य द्रव्य है और अनुगम से रहित पर्याय विशेष है। . द्रव्यार्थिकाभास के तीन भेद हैं नैगमाभास, संग्रहाभास और व्यवहाराभास,।
इनमें से नैगमाभास का निरूपण करते हैं -