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अवयव के सूक्ष्म उत्पादक अवयव मानने होंगे। यदि ये सूक्ष्म अवयव न हों तो आदिम स्थूल का जन्म बिना अवयवों के मानना पडेगा। परन्तु सूक्ष्म अवयवों के बिना स्थूल द्रव्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। शून्य किसी अर्थ को भी नहीं उत्पन्न करता। इस प्रकार स्थूल अर्थों के आधार को आंख आदि इन्द्रियां नहीं जानतीं तो भी मानना पड़ता है । सूक्ष्म द्रव्य ही नहीं इनके रूप स्पर्श आदि गुणों को भी इन्द्रियां नहीं जान सकतीं। यदि आदिम दशा के अवयव रूप रस आदि गुणों से रहित हों, तो स्थूल अवयवों में रूप रस आदि का जन्म न हो सकेगा। इन्द्रियों के द्वारा जिनका अनुभव प्रत्यक्ष रूप से न हो सके उनकी सत्ता स्थूल अर्थों के लिए भी अपरिहार्य है। इस तत्व की उपेक्षा करके चार्वाक पृथ्वी आदि चार स्थूल द्रव्यों को तो स्वीकार कर लेता है पर जिनका अनुभव इन्द्रियों द्वारा नहीं हो सकता उनका अनुमान से सिद्ध होने पर भी निषेध करने लगता है।
स्थूल शरीर प्रत्यक्ष है उसीको स्वीकार करता है। शरीर से भिन्न चेतन द्रव्य को नहीं मानता । उसका यह मत अनुमान के विरुद्ध 'है । स्थूल द्रव्यों के गुणों का संवेदन उस नियम को प्रकट करता है जिसके द्वारा ज्ञान-सुख-आदि गुण शरीर के नहीं सिद्ध होते । स्थूल द्रव्यों में सूक्ष्म द्रव्य प्रवेश कर जाते हैं। उस दशा में स्थूल द्रव्यका स्वाभाविक गुण नहीं प्रतीत होता और अन्दर प्रविष्ट होनेवाले द्रव्य का गुण स्थूल द्रव्य में प्रतीत होने लगता है। पानी शीतल द्रव्य है और तेज उष्ण द्रव्य है। जब तेज के अवयव पानी के अन्दर चले जाते हैं तब पानी के शीत स्पर्शका अनुभव नहीं होता, उस दशा में पानी का स्पर्श उष्ण प्रतीत होने लगता है । वास्तव में ऊण स्पर्श तेज का है पर जल के गुणरूप में प्रतीत होता है। शरीर भी भौतिक है, रूप-गन्ध-आदि उसके गुण हैं जिनका अनुभव इन्द्रियों द्वारा होता रहता है। शरीर के समान जो अर्थ पृथ्वो जल आदि से उत्पन्न होते हैं उनमें ज्ञान, इच्छा, सुख आदि के होने का