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चारित्र के साथ होने पर जिस प्रकार सम्यग् ज्ञान का सम्यक्त्व होता है इसी प्रकार ज्ञान के साथ होने पर चारित्र का सम्यक्त्व होता है। इस विषय में पंगु और अन्ध का दृष्टांत प्रसिद्ध है। पंगु ज्ञान वाला है और जहां जाना है वहां पहुँचाने वाले मार्ग को देखता भी है परन्तु चल नहीं सकता इसलिए वह अकेला नहीं पहुँच सकता । अन्धा पुरुष चल सकता है परन्तु मार्ग को न देखने के कारण स्थान पर नहीं पहुँच सकता। दोनों मिलकर परस्पर की सहायता से नियत स्थान पर पहुँच सकते हैं । ज्ञान और कर्म भी दोनों मिलकर मोक्ष के कारण हैं। जब तक शैलेशी दशा में शुद्ध संयम नहीं प्रकट होता तब तक क्षायिक केवलज्ञान मोक्ष को नहीं दे सकता । अतः ज्ञान और कर्म दोनों मोक्ष के प्रधान कारण हैं, यह सिद्धान्त पक्ष है ।
नैगम आदि नय शुद्ध ज्ञान की अथवा शुद्ध क्रिया की प्रधानता मानते हैं ज्ञान आदि तीनों की नहीं यह सिद्धान्त से नयों का भेद है।
[नयों के न्यूनाधिक विषयों का विचार ]
मूलम्:- कः पुनरत्र बहुविषयो नयः को वाऽल्पविषयः, इति चेत्
अर्थः- इन नयों में किस नय का विषय अधिक है और किसका न्यून है ।
मूलम्:- उच्यते-- सन्मात्र गोचरात्संग्रहात्तावन्नैगमो बहुविषयो भावाभावभूमिकत्वात् ।
अर्थः- उत्तर यह है, संग्रह नय का विषय केवल सत् है और नैगम का विषय भाव और अभाव दोनों हैं । इसलिए नैगम संग्रह की अपेक्षा अधिक विषयवाला है ।