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अनुभव नहीं कर रहा है तब वास्तव में इन्द्र शब्द का उसके लिए प्रयोग नहीं होना चाहिए-यह एवंभूत नय का अभिप्राय है । जो गति करती है वह गाय है । गम् धातु से गो शब्द की उत्पत्ति है। गम् धातुका अर्थ है-चलना । जब गाय बैठी है अथवा सो रही है तब वह नहीं चलती, इसलि ( एवंभूत नय के अनुसार उसको गा नहीं कहा जा सकता।
मूलम्:-समभिरूढनयो हीन्दनादि क्रियायां सत्यामसत्यांच वासवादरर्थम्येन्द्रादिव्यपदेशमभिप्रेति, क्रियोपलक्षितसामान्यस्यैव प्रवृत्ति निमित्तत्वात् , पशुविशेषस्यगमनक्रियायां सत्यामसत्यां च गोव्यपदेशवत् , तथारूढे सद्भावात् । एवम्भृतः पुनरिन्दनादिक्रियापरिणतमर्थं तक्रियाकाले इन्द्रादिव्यपदेशमाजमभिमन्यते ।
अर्थः- इन्दन आदि क्रिया विद्यमान हो अथवा अविद्यमान, समभिरूढ नय के अनुसार बासव आदि अर्थ इन्द्र आदि शब्द का वाच्य है, कारण; क्रिया से उपलक्षित सामान्य शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त है । जाने की क्रिया विद्यमान हो अथवा न हो विशेष प्रकार का पशु गौ कहा जाता है, इसी प्रकारकी रूढि है । परन्तु एवभूत नय इन्दन आदि क्रिया में परिणत अर्थ को उस क्रिया के काल में इन्द्र आदि शब्दों से वाच्य मानता है।
विवेचनाः-समभिरूढ नयके अनुसार व्युत्पत्ति के द्वारा जो क्रिया प्रतीत होती है वह व्युत्पत्ति की निमित्त है। परन्तु व्युत्पत्तिका निमित्त सदा प्रवृत्तिका निमित्त नहीं हो सकता। किसी काल में क्रिया शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त हो सकती है, परन्तु सदा प्रवृत्तिका निमित्त नहीं बन सकती जब क्रिया न हो तब प्रवृत्ति-निमित्त क्रिया से भिन्न हा जाता। गौ जब न चल रही हो तब गोत्व जाति के कारण गो