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कार्यको उत्पन्न करते हैं वे प्रधान रूपसे कारण नहीं हैं। क्षायिक परिपूर्ण ज्ञान और क्षायिक दर्शन के प्राप्त होने पर भी उसी क्षण में मोक्ष नहीं होता। सर्व सैवररूप चारित्र के मिलने पर ही मोक्ष होता है, इसलिए चारित्र रूप क्रिया को मोक्ष का कारण मानना चाहिए। यह मत ऋजुसूत्र आदि चार नयों का है ज्ञान और दर्शन के बिना सर्व संवर रूप चारित्र की प्राप्ति नहीं होती। परन्तु इतने से उनको मोक्ष का कारण नहीं माना जा सकता, वे दोनों तो सर्व संवर के कारण हैं। यदि उनको मोक्ष का कारण कहा जाय तो ज्ञान और दर्शन के अनन्तर ही मोक्ष हो जाना चाहिए। यदि सर्व संवररूप चारित्र की प्राप्ति में सहायक होने से ज्ञान और दर्शन को चारित्र के समान ही कारण कहा जाय तो कोई भी अर्थ ऐसा नहीं रहेगा जो ज्ञान दर्शन और चारित्र का कारण न हो। ज्ञानकी उत्पत्ति में विषय कारण है।
संयमी के ज्ञान का विषय समस्त संसार है इसलिए संसार के समस्त अर्थों को ज्ञान का कारण मानना पडेगा। जीव और अजीव का स्वरूप सम्यग् दर्शन का विषय है इसलिए वह भी सम्यग् दर्शन का कारण हो जायगा प्रवृत्ति और निवृत्ति भी अर्थों में होती है इस लिए समस्त अर्थों को संयमी की प्रवृत्ति और निवृत्ति में भी कारण मानना पड़ेगा। इतना ही नहीं, परंपरा से उपकारक होने के कारण यदि ज्ञान और दर्शन को मोक्ष का कारण कहा जाय तो शरीर, माता, पिता, वस्त्र, भोजन, औषध आदि को भी मोक्ष का कारण मानना होगा। इस दशा में ज्ञान दर्शन और चारित्र को ही मोक्ष का कारण नहीं कहा जा सकेगा। ज्ञान आदि तीन मोक्ष के लिए अत्यन्त निकट वर्ती कारण हैं इसलिए वे मोक्ष का उपाय कहे जाते हैं। देह आदि परंपरा से उनकी उत्पत्ति में सहायक हैं इसलिए उनको मोक्ष का उपाय न कहा जाय तो चारित्र को ही मोक्ष का कारण कहना चाहिए। चारित्र के अनन्तर बिना व्यवधान के मोक्ष होता है।
मूलम्:- नैगम माहव्यवहारास्तु यद्यपि चारित्रश्रुतसम्यक्वानां त्रयाणामपि मोक्षकारणत्वमिच्छन्ति, तथापि व्यस्ताना