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मेव, नतु समस्तानाम्, एतन्मते ज्ञानादित्रयादेव मोक्ष इत्यनियमात्, अन्यथा नयत्वहानिप्रसङ्गात, समुदयवादस्य स्थितपक्षत्वादिति द्रष्टव्यम् , ___अर्थ:- नैगम, संग्रह और व्यवहार यद्यपि चारित्र श्रुत ज्ञान और सम्यक्त्व इन तीनों को मोक्ष का कारण मानते है, तो भी प्रत्येक को अलग अलग कारण कहते हैं, मिलित रूप में तीनों को कारण नहीं कहते । इन नयों के अनुसार ज्ञान आदि तीन से ही मोक्ष है, इस प्रकार का कोई नियम नहीं है। यदि ये तीनों को मोक्ष का कारण मानलें तो इनमें नय भाव ही नहीं रहेगा। मिलित रूप में ज्ञान दर्शन और चारित्र तीनों मोक्ष के कारण है-यह सिद्धांत पक्ष है।
विवेचनाः- कुछ लोग भिन्न नयों के अनुसार तप आदि कर्मों को मोक्ष का कारण मानते हैं और कुछ लोग ज्ञान को। इनमें से जो लोग यम नियम आदि कर्मों को मोक्ष का कारण मानते हैं उनका कहना है-कर्म क्षणिक होते हैं। जिस काल में फल उत्पन्न होता है तब तक वे नहीं रहते। क्षणिक होने पर भी वे फल के उपादान कारण में इस प्रकार का संस्कार उत्पन्न करते है जो चिरकाल तक रह सकता है और नियत काल में फल उत्पन्न करता है जो बीज बोता है उसको फल चिरकाल के बीत जाने पर मिलता है किसान खेत में पानी देता है। सूर्य की धूप का उचित परिणाम में खेत के साथ सम्बन्ध हो इसका प्रबन्ध करता है। पवन का भी खेत के साथ सम्बन्ध होता रहता है। यदि जल तेज और पवन आदि की क्रिया न हो तो खेत में बीज अंकुर को उत्पन्न नहीं कर सकता। जल आदि के कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं परन्तु वे भूमि में: पडे बीज के अन्दर संस्कार को उत्पन्न करते हैं। वह संस्कार बीज में स्थिर हो जाता है और किसी काल में अंकुर को उत्पन्न करता है। यदि संस्कार की उत्पत्ति