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भिमता अपि क्रिशन्दा एव-शुचीभवनाच्छुक्लो, नीलनात् नील इति । देवदत्तो यज्ञदत्त इति यदृच्छा शब्दाभिमता अपि क्रिया शब्दा एव, देव एनं देयात् यज्ञ एनं देयादिति । संयोगिद्रव्य शब्दाः समवाय ( यि ) द्रव्य शब्दाश्चाभिमताः क्रिया शब्दा एव, दण्डोस्यास्तीति दण्डी, विषाणमस्याग्तीति वाणीत्यस्ति क्रियाप्रधानत्वात् । पञ्चतयी तु शब्दाना व्यव हारमात्र तु, न तु निश्चयादित्ययं नयः स्वीकुरुते ।
अर्थः- एवंभूत नय के अनुसार कोई भी शब्द अक्रिया शब्द नहीं है । गौ अश्व इत्यादि शब्द जाति-वाचक माने जाते हैं पर वे भी क्रिया शब्द हैं। जो गमन करती है वह गौ है और जो जल्दी जाता है वह अश्व है । शुक्ल नील आदि शब्द गुण शब्द कहे जाते हैं पर वे भी क्रिया शब्द हैं। शुचि होने से शुक्ल और नीलन करने से नील कहा जाता है । देवदत्त यज्ञदत्त आदि शब्द यदच्छा शब्द कहे जाते हैं पर वे भी क्रिया शब्द | देव इसको देवे इस प्रकार की इच्छा जिसके लिए की जाय वह देवदत्त है, यज्ञ इसको देवे इस प्रकार की इच्छा जिसके लिये की जाय वह यज्ञदत है । संयोगिद्रव्य शब्द और समवायिद्रव्य शब्द जो माने जाते हैं, वे भी क्रिया शब्द हैं । दण्ड इसका है इसलिए दण्डी, त्रिषण इसका है इसलिए विषाणी इसरीति से इनमें भी होने की क्रिया प्रधान है । शब्दों के पांच प्रकार केवल व्यवहार से हैं, निश्चय से नहीं, इस वस्तु को यह नय स्वीकार करता है ।
विवेचनाः-पांच प्रकार के शब्द माने जाते हैं जाति शब्द गुण शब्द, - क्रिया शब्द - यदृच्छा शब्द - और द्रव्य शब्द । इन सभी शब्दों में कोई न कोई क्रिया अवश्य प्रतीत होती है । जिनको क्रिया शब्द कहा जाता है उनमें क्रिया अति स्पष्ट रूप से प्रतीत होती है और