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करता। परन्तु अर्थ क्रिया को उत्पन्न करने वाला पर्याय स्थिर रहता है। जलाने के लिये किसी वस्तु का सम्बन्ध न हो तो अग्नि दाह नहीं उत्पन्न करता परन्तु उस काल में भी दाह का उत्पादक उष्ण पर्याय अग्नि में रहता है इसलिए इस प्रकार का स्थिर पर्याय अर्थ क्रिया कारित्त्व से उपलक्षित होता है उस काल में भी दाह के उत्पन्न करने की योग्यता अग्नि में रहती है वृक्षं आदि अर्थ के साथ सम्बन्ध न होने पर ज्ञान भी प्रकाशन नहीं करता, परन्तु उस काल में भी स्थिर ज्ञान अर्थ के प्रकाशन की योग्यता से युक्त रहता है। अर्थ प्रकाशन की योग्यता और अनेक सुख आदि अथे पर्यायों में स्थिरता के कारण चैतन्य व्यंजन पर्याय है। सत्त्व भी अन्य पर्यायों में स्थिर रहता है इसलिए यहां पर व्यंजन पर्याय कहा गया है। इन में सत्त्व विशेषग है और चैतन्य विशेष्य है इसलिए यहां पर नैगम नय है।
जो पर्याय धर्मी में अतीत और अनागत काल में नहीं है किन्तु वर्तमान काल में है वह अर्थपर्याय है, यह पर्याय प्रतिक्षण भिन्न होनेवाली वस्तु के स्वरूप में रहता है।
मूलम् :- वस्तु पर्यायवद् द्रव्यमिति द्रव्ययोमुख्यामुख्यबया विवक्षणम् , पर्यायवद् द्रव्याख्यस्य धर्मिणो विशेष्यत्वेन प्राधान्यात् , वस्त्वाख्यस्य विशेषणत्वेन गौणत्वात् । ___अर्थः- पर्यायवाला द्रव्य वस्तु है इस रूप से दो द्रव्यों का मुख्य और अमुख्य रूप से प्रतिपादन होता है। पर्यायवाला द्रव्य नामक धर्मी विशेष्य होने के कारण प्रधान है। वस्तु नामक धर्मी विशेषण होने से गौण है।
वस्तु विशेषण है । वह भी द्रव्य है पर्याय से विशिष्ट द्रव्य भी द्रव्य है । जब पर्यायों के साथ द्रव्य को विशेष्य रूप से कहते हैं तब वह मुख्य हो जाता है। वस्तु विशेषण रूप से कहागया है इसलिए वह गौण हो जाता है।