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जब 'वस्तु कौनसी है ? जो पर्यायों से विशिष्ट द्रव्य है' इस रूप से विवक्षा होती है तो वस्तु विशेष्य होने के कारण प्रधान हो जाती है और पर्याय से विशिष्ट द्रव्य गौण हो जाता है। यह नैगम दो धर्मियों के विषय में है।
मूलम्:- क्षणमेकं सुखी विषयासक्त जीव इति पर्यायद्रव्ययोर्मुख्यामुख्यतया विवक्षणम्, अत्र विषयासक्त जीवाख्यस्य धर्मिर्णो विशेष्यत्वेन मुख्यत्वात् , सुखलक्षणस्य तु धर्मस्य तद्विशेषणत्वेनामुख्यत्वात् । - अर्थः- विषय में आसक्त जीव एक क्षण सुखी होता है इस रीति से पर्याय और द्रव्य की मुख्य और अमुख्य रूप से विवक्षा होती है। यहां विषय में आसक्त जीव नाम धर्मी विशेष्य होने के कारण मुख्य है । सुख रूप धर्म उसका विशेषण होने के कारण अमुख्य है। ___ यहां पर जीव द्रव्य है और सुख पर्याय है इसलिए यहांपर धर्म और धर्मी को लेकर नैगम है। विशेष्य होने के कारण धर्मी जीव मुख्य है और सुख नामक धर्म विशेषण होने के कारण मुख्य नहीं है। ___ मूलम्:-- न चैवं द्रव्यपर्यायोभयावगाहित्वेन नैगमस्य प्रामाण्यप्रसङ्गः, प्राधान्येन तदुभयावगाहिन एव ज्ञानस्य प्रमाणत्वात् ।
अर्थः- द्रव्य और पर्याय दोनों का प्रकाशक होने से नैगम प्रमाण हो जाना चाहिए । इस प्रकार की शंका उत्पन्न होती है। इसका उत्तर-प्रधान रूप से जो द्रव्य और पर्याय को प्रकाशित करता है वही ज्ञान प्रमाण होता है।