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कराता है। जिस प्रकार अविरोधी अर्थ में पङकेत किया जा सकता है इसी प्रकार विरोधी अर्थ में भी संकेत हो सकता है । संकेत होने पर विधि और निषेध दोनों का ज्ञान एक पर करा सकता है । व्याकरण में शत और शानश दो विरोधी प्रत्यय हैं। इन दोनों के लिए 'सत्' पद का संकेत है. सत् पद से दोनों का ज्ञान एक साथ होता है । 'सत्' पदके समान कोई सांकेतिक पद विधि और निषेध का ज्ञान करा सकता है। ... - इस आक्षेप के उत्तर में कहते हैं. संकेत कराने से पद दो अर्थों का बोध करा सकता है। परन्तु क्रम के साथ, एक काल में नहीं। जिस भी पद का विधि और निषेध दोनों के लिये संकेत किया जायगा वह क्रम से ही ज्ञान करा सकेगा, एक काल में नहीं।
इस पर फिर शंका की जाती है-विरोधी अर्थों में विरोधी धर्म रहते हैं, इन धर्मों के द्वारा बोध दोनों अर्थों का एक पद से हो, तो क्रम अवश्य होता है । घट में घटत्व है उसका विरोधी पटत्व पट में है। यदि कोई भी पद संकेत के कारण घटत्व और पटत्व धर्मों के द्वारा बोध करावे तो क्रम से ही करा सकता है । विरोधी धर्मों का ज्ञान क्रम से ही हो सकता है। शत और शानश भी दो विरोधी प्रत्यय हैं। शतपन और शानशपन दो विरोधी धर्म हैं । 'सत्' पद इन दो धर्मों के द्वारा ज्ञान कराता है, इसलिये ज्ञान क्रम से होता है सत्त्व और असत्त्व भी दो विरोधी धर्म हैं। घटत्व और पटत्व के स्वरूप से सत्त्व और असत्त्व का स्वरूप भिन्न है परन्तु विरोध की दृष्टि से भेद नहीं है। घटत्व और पटत्व के धर्मो भिन्न हैं। किसी एक धर्मों में घटत्व और पटत्व नहीं