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रूप से केवल सत्त्वात्मक और असत्त्वात्मक रूप में घट आदि अवाच्य है। यह अवक्तव्य का पहला प्रकार है। ____ अथवा नाम स्थापना द्रव्य और भाव के भेद से जब अर्थों का भेद किया जाता है, तब जिस रूप में विवक्षा चाहते हैं और जिस रूप में विवक्षा नहीं चाहते हैं-उन दो रूपों से प्रथम और द्वितीय भङ्ग होते हैं। इन दोनों प्रकारों से यदि एक काल में कहने की इच्छा हो, तो अर्थ किसी भी शब्द से नहीं कहा जा सकता इसलिये अवाच्य है । जिस रूप से विवक्षा नहीं है उस रूप से भी यदि घट हो, तो नियत नाम और स्थापना आदिका व्यवहार नहीं होना चाहिये । इसी प्रकार जिस रूप से कहना चाहते है उस रूप से भो यदि घट न हो तो घट का व्यवहार ही नहीं होना चाहिये । इन दोनों पक्षों में से यदि केवल एक पक्ष को स्वीकार किया जाय तो अर्थ का स्वरूप नहीं रहता इसलिये अवाच्य हो जाता है-यह अवक्तव्य का दूसरा प्रकार है।
अथवा नाम आदिका जो प्रकार नियत है उसमें जो आकार आदि है उसके रूप में घट है । नाम आदि में जो आकार आदि नहीं है उसके द्वारा वह घट नहीं है। इन दोनों प्रकारों से एक काल में कहने की शक्ति किसी पद में नहीं है--अतः अवक्तव्य है । जो आकार आदि विद्यमान है उसके कारण जिस प्रकार घट है इस प्रकार यदि आविद्यमान आकार से भी घट हो, तो एक ही घट समस्त घटों के रूपमें हो जाना चाहिये । यदि विद्यमान आकार से भी घट न हो, तो घट का अर्थो मनुष्य, वृक्ष में जिस प्रकार प्रवृत्ति नहीं करता इस प्रकार घट में भी प्रवृत्ति न करे । इन दोनों में से कोई भी एकान्त प्रमाणों से सिद्ध नहीं है--इसलिये