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रहते। परन्तु सत्त्व और असत्त्व यहाँ पर भिन्न धर्मियों में नहीं हैं, एक ही धर्मी में हैं । एक धर्मी में होने पर भी उनका स्वभाव परस्पर विरोधी है । एक घट में रूप रस गन्ध आदि धर्म हैं। भिन्न धर्मियों में रहनेवाले घटत्व पटत्व के समान उनमें विरोध नहीं है । परन्तु असाधारण धर्म के कारण उनमें भी विरोध है । रूपत्व और रसत्व आदि धर्मों के कारण रूप रस आदि धर्म भी परस्पर विरोधी हैं । रूपत्व केवल रूप में है और रसत्व केवल रस में है। रूपत्व के द्वारा रूप का और रसत्व के द्वारा रस का जब शान होगा तब एक घट अथवा फल आदि धर्मी में रहने पर भी रूप और रस का ज्ञान क्रम से होता है। सत्त्व और असत्त्व रूप रस आदिके समान घट और फल आदि धमियों में एक साथ रहते हैं। परन्तु रूपत्व जिस प्रकार रसत्व से भिन्न है इस प्रकार घट आदि एक अर्थ में रहनेवाले सत्त्व और असत्त्व भी सत्त्व भाव और असत्त्व भाव से भिन्न हैं । सत्त्व भाव केवल सत्त्व में और असत्त्वभाव केवल असत्व में है. इसलिये एक धर्मों में रहने पर भी सत्त्व और असत्व का जब अपने अपने मत्त्व भाव और असत्वभाव-रूप असाधारण स्वरूप से ज्ञान होगा, तब क्रम से ही होगा । परन्तु जब भिन्न विरोधी धर्मों में समान रूपसे रहने वाले किसी एक सामान्य धर्म के द्वारा ज्ञान होगा तो एक साथ भी हो सकेगा। रूप, रस आदि गुणों में गुणत्व एक सामान्य धर्म है। गुणत्व रूप से रूप रस आदि समस्त गुणों का एक साथ ज्ञान हो सकता है । गुण पद गुणत्वरूप से रूप आदि समस्त गुणों का एक काल में प्रतिपादन कर सकता है।