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विवेचना:-वृक्ष शब्द, वृक्ष रूप अर्थ का वाचक है। नक्षत्र शब्द नक्षत्र रूप अर्थ का बाधक है। अन्य शब्द भी भिन्न अर्थों के वाचक हैं । इसलिये सब धर्म एक शब्द के वाच्य नहीं हो सकते । यदि स्वरूप के भिन्न होने पर भी सब धर्मों का वाचक एक शब्द हो, तो वृक्ष नक्षत्र आदि सब अर्थों का भी वाचक एक शब्द हो जाना चाहिये । इस रीतिसे काल भादिके द्वारा भिन्न स्वरूपवाले धर्मों में अभेद का उपचार किया जाता है।
पर्यायाथिक नय से काल आदि जब अभेद का प्रतिपादन नहीं कर सकते, तब भिन्न धर्मों में भेद होने पर भी अभेद का व्यवहार किया जाता है।
मूलमः-एवं भेदवत्तितदुपचारावपि वाच्याविति ।
अर्थः-इसी प्रकार भेदवृत्ति और भेद के उपचार का भी प्रतिपादन कर लेना चाहिये ।
विवेचना:-विकलादेश में काल आदिके द्वारा भेद का प्रधान रूप से प्रतिपादन होता है अथवा भेद का उपचार होता है । जब पर्याय नय प्रधान होता है, तब द्रव्याथै नय के द्वारा भेद प्रधान नहीं हो सकता, इसलिये भेद का उपचार किया जाता है । जब पर्याय नय के अनुसार गुण आदि अभेद को असंभव कर देते हैं-तब भेद मुख्य हो जाता है।
मूलम:-पर्यवसितं परोक्षम् । ततश्च निरूपितः प्रमाणापदार्थः।