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मूलम्ः-समकालमेकत्र नानागुणानामसम्भवात् , सम्भवे वा तदाश्रयस्य भेदप्रसङ्गात् ।
अर्थः-(१) एक काल में एक धर्मी में अनेक गुण नहीं हो सकते । यदि हो सके तो उनके आश्रय अर्थ में भी भेद हो जाना चाहिये ।
विवेचना:-पर्यायों को प्रधान मानकर गुणी का विचार किया जाय तो जिस काल में एक अर्थ में सत्त्व है उसी काल में असत्त्व नहीं रह सकता एक कालमें सत्त्व और असत्त्व दोनों रहें तो उनके आश्रय भिन्न हो जाने चाहिये । गोत्व और अश्वत्व दो भिन्न धर्म हैं। दोनों के आश्रय गौ और अश्व भिन्न हैं । एक काल में रहने के कारण गोत्व और अश्वत्व का अभेद नहीं होता।
मूलमा-नानोगुणानां सम्बन्धिन आत्मस्वरूपस्य च भिन्नत्वात् , अन्यथा तेषां भेदविरोधातु , _____ अर्थः-(२) अनेक गुणों का सम्बन्धी आत्मरूप भी भिन्न होता है यदि भिन्न न हो, तो गुणों में भेद नहीं हो सकता।
विवेचना -पुष्प आदि गुणी अर्थों में रूप रस आदि गुणों का स्वरूप परस्पर भिन्न होता है। यदि स्वरूप भिन्न न हो तो रूप आदिमें भेद नहीं होना चाहिये । रूप आदिके समान सत्त्व और असत्त्व आदि धर्म भी अपने अपने स्वरूप से भिन्न