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३९४ अर्थः-प्रमाण से सिद्ध अनन्त धर्मोंवाली वस्तु का काल आदि के द्वारा अभेद की प्रधानता से अथवा अभेद के उपचार से एक काल में प्रतिपादन करनेवाला वचन सकलादेश कहा जाता है । नय के विषयभूत वस्तु के धर्म का भेद वृत्ति की प्रधानता से अथवा भेद के उपचार से क्रम के साथ प्रतिपादक वाक्य विकलादेश कहा जाता है।
_ विवेचना:-प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म हैं उन सब का एक में जो प्रतिपादन करे वह वचन सकलादेश है । साधारण रूप से एक शब्द एक धर्म का प्रतिपादन करता है । यदि एक एक धर्म के लिये एक एक शब्द का प्रयोग किया जाय तो अनन्त धर्मों के लिये अनन्त शब्दों का प्रयोग करना पडेगा। परन्तु यह हो नहीं सकता, इसलिये एक धर्म का अन्य धर्मों के साथ अभेद मान लिया जाता है। मुख्यरूप से एक धर्म एक शग्द का वाच्य है। पर अभेद हो जाने से अन्य धर्म भी पाच्य हो जाते है । इस प्रकार एक शब्द ममन्त धर्मों का प्रतिपादक हो जाता है। इस प्रकार अनन्त धर्मों का प्रतिपा. बक होने पर प्रत्येक भाग सकलादेश हो जाता है। सकला. बेश को प्रमाण वाक्य कहते हैं। वाच्य एक धर्म के साथ अन्य धर्मों का अभेद न मानकर जब एक धर्म का प्रतिपादन होता है, तब प्रत्येक भङ्ग विकलादेश कहा जाता है। वस्तु के एक श का प्रतिपादक होनेके कारण उसको नय वाक्य कहते हैं। काल आदिके द्वारा किसी एक धर्म का अन्य धर्मों के साथ अभेद दो-प्रकार से किया जाता है, प्रधानभाव से और उप. चार से । इस प्रधान भाव और उपचार का स्वरूप उपाध्याय