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नहीं कहा जा सकता-अतः स्व सत्त्व हो पर रूप से असत्त्व नहीं है। स्व द्रव्य आदिकी अपेक्षा से सत्त्व का ज्ञान और पर द्रव्य आदिकी अपेक्षा से असत्त्व का ज्ञान होता है। यह कारणों का भेद भी स्वरूप से सत्त्व और पर रूप से असत्त्व को भिन्न सिद्ध करता है और एकान्त रूप से अभेद का निषेध करता है। ___यदि असत्व कल्पना से सिद्ध हो तो बौद्ध निर्दोष हेतु के जिन तीन रूपों को स्वीकार करते हैं वे भी उपपन्न नहीं होंगे । बौद्धों के अनुसार हेतु के लिए पक्ष में सत्त्व, सपक्ष में सत्त्व और विपक्ष में असत्त्व ये तीन रूप होने चाहिये। यदि असत्त्व कल्पना मूलक हो, तो विपक्ष में असत्त्व भी काल्पनिक हो जायगा । उस दशा में हेतु का निर्दोष स्वरूप न रह सकेगा । अतः सत्त्व और असत्त्व वस्तु के दोनों धर्म तात्त्विक हैं।
मूलम:-स्यादस्त्येव स्थानास्त्येवेति प्राधान्येनक्रमिकविधिनिषेधकल्पनया तृतीयः । - अर्थः-किसी अपेक्षा से प्रत्येक अर्थ सत् है और किसी अपेक्षा से असन् है इस प्रकार प्रधानरूप से क्रमके साथ विधि और निषेध के निरूपण द्वारा तृतीय भङ्ग होता है।
विवेचना:-क्रम के साथ विधि और निषेध इन दोनों की विवक्षा हो, तो तृतीय भंग होता है। प्रथम भङ्ग के द्वारा स्व-द्रव्य आदिको अपेक्षा से केवल सत्त्व का प्रधानरूप से निरूपण होता है । द्वितीय भङ्ग के द्वारा पर द्रव्य आदिको