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अग्नि में रूप है और रस नहीं इस प्रकार कहा जाय तो सप्तभङ्गी नहीं प्रकट हो सकती । अग्नि में रूप के सत्व के साथ रस के असत्त्व का विरोध नहीं है । बिरोध से रहित अनेक धर्मों का एक धर्मो में प्रतिपादन करने पर जिस प्रकार सप्तभङ्गी नहीं होती, इस प्रकार एक धर्मो में विरोध से रहित एक धर्म के सत्त्व और अन्य धर्म के असत्त्व का प्रतिपादन हो तो भी सप्तमङ्गी नहीं हो सकती। विरोधी धर्मो में विरोध के अभाव का निरूपण हो, तो सप्तभङ्गी होती है।
वचन के जिन प्रकारों से अर्थ भिन्न हो जाते हैं वे भङ्ग कहे जाते हैं । सात भङ्गों के समूह को सप्तभङ्गी कहते हैं ।
मूलम्:- इयं च सप्तभङ्गी वस्तुनि प्रतिपर्यायं सप्तविधधर्माणां सम्भवात् सप्तविधसंशयोत्थापितसप्तविधजिज्ञासामूलसप्तविधप्रभानुरोधादुपपद्यते |
अर्थः- एक वस्तु के प्रत्येक पर्याय में सात प्रकार के ही धर्म हो सकते हैं। इस कारण सात प्रकार के संदेह और इसी कारण संदेह से उत्पन्न सात प्रकार की जिज्ञासा और उनके कारण सात प्रकार के प्रश्न होते हैं, इन प्रश्नों के कारण प्रत्येक पर्याय में सात भङ्ग उत्पन्न होते हैं ।
विवेचना:- मुख्यरूप से सत्त्व और असत्त्व धर्म का आश्रय लेकर सप्तभङ्गी उठती है । क्रम से और क्रम के बिना