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साथ प्रतीत होता है । गुण और पर्याय के साथ अर्थ का प्रतीत होनेवाला स्वरूप भाव है। जब भी कोई अर्थ प्रतीत होता है तब उपादान कारण देश काल और अपने गुणों और पर्यायों के साथ प्रतीत होता है। मिट्टी का घडा जब दिखाई देता है तब उपादान कारण मिट्टी भी दिखाई देती है। वह किसी न किसी देश में और किसी न किसी काल में प्रतीत होता है । कोई गुण और पर्याय भी उसका दृष्टि गोचर होता है। द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के बिना किसी अर्थ का स्वरूप विचार में भी नहीं लाया जा सकता। अर्थ के साथ अपरिहार्यरूप से रहनेवाले द्रव्य, क्षेत्र आदि अर्थ के अपने होते हैं। जो द्रव्य क्षेत्र आदि स्व नहीं हैं अर्थात् अपने नहीं है उनकी अपेक्षा से अर्थ सत् नहीं होता। घट जब है तब अपने उपादान पृथियो के साथ रहता है, पृथ्वी के बिना घट नहीं रह सकता। जल घट का उपादान कारण नहीं है इसलिए जलरूप से घट सत् नहीं हैं। जब घट किसी एक स्थान में रहता है तब अन्य स्थान में वह नहीं रहता। अन्य स्थान की अपेक्षा से वह असत् है । जब घट वर्तमान काल में प्रतीत होता है तब अनागत अथवा अतीत काल में प्रतीत नहीं होता । वर्तमान काल की अपेक्षा से घट सत् होता हुआ भी अतीत और अमागत में असत् है । इसी प्रकार दिखाई देनेके समय पर यदि घट श्याम हो तो श्याम स्वरूप से ही सत् है। पीत अथवा रक्त रूप से सत् नहीं है। उस काल में श्याम रूप के साथ ही घट का अभेद है। उपादान पृथिवी के साथ और श्याम आदि गुणों के साथ घट का भेदाभेद है। देश और काल के साथ भेदाभेद तो नहीं है किंतु संयोग सम्बन्ध है। उपादान और गुणों के समान देश और काल के साथ