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द्रव्य मानता है। सांख्य का अनुगामी अहंकार नामक तत्व से उत्पन्न कहता है । सांख्य के अनुसार प्रकृति से महत् नामक तत्त्व उत्पन्न होता है और महत् से अहंकार नामक तत्त्व उत्पन्न होता है । अहंकार से शब्द उत्पन्न होता है यह शब्दतमात्र कहा जाता है और इस शन्दतन्मात्र से आकाश नामक स्थूल भूत उत्पन्न होता है । वर्णरूप और ध्वनिरूप शब्द इस आकाश का गुण है इन सब मतों से भिन्न मत जैनों का है। इनके अनुसार भाषावर्गणा के परमाणुरूप पुद्गलों से अकार आदि वणे उत्पन्न होता है। पृथिवी, जल आदि द्रव्य जिस प्रकार पुद्गलों के परिणाम हैं इस प्रकार वर्ण भी पुद्गलों के परिणाम हैं।
किसी अर्थ में जिसका संकेत है इस प्रकार का वर्ण भथवा परस्पर को अपेक्षा रखनेवाले वर्गों का समूह पद है। अर्थ का ज्ञान करने में परस्पर की अपेक्षा करनवाले और अन्य वाक्य के पदों की अपेक्षा न रखनेवाले पदों का समूह वाक्य है। 'गाम् आनय' यह एक वाक्य है-इसके दो पद हैं। गाम् जौर आनय । आनय, गाम् की आकांक्षा करता है और गाम् आनय की।
मूलम् :-तदिदमागमप्रमाणं सर्वत्र विधिप्रति. षेधाभ्यां स्वार्थमभिदधानं सप्तभङ्गोमनुगच्छति, तथैव परिपूर्णार्थप्रापकत्वलक्षणताविकप्रामाण्य. निर्वाहात, कचिदेकभङ्गदर्शनेऽपि व्युत्पन्नमती. नामितरभङ्गाक्षेपध्रौव्यात्।