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प्रयोग किया था तो वृक्ष विशेष का ज्ञान हुआ था, अब मैत्र मी आम्र शब्द का प्रयोग कर रहा है इसलिए यह आस्त्र शब्द भी वृक्ष विशेष का वाचक है। इस रीति से शब्द जब व्याप्ति ज्ञान की अपेक्षा से अर्थ का ज्ञान उत्पन्न करता है तब अनुमानरूप होता है । परन्तु जब अभ्यास होने पर व्याप्ति ज्ञान की अपेक्षा से रहित होकर अर्थ को प्रकाशित करता है तब अनुमान से भिन्न होता है । इस विषय में खोटी सच्ची मुद्रा के भेद को प्रकाशित करने वाले प्रत्यक्ष के समान शब्द है । इस प्रकार का प्रत्यक्ष, अनुमान से जिस प्रकार भिन्न है इस प्रकार शब्द भी ।
मूलम्:- यथास्थितार्थ परिज्ञानपूर्वक हितोपदेशप्रवणआप्तः, वर्णपदवाक्यात्मकं तद्वचनम्,
अर्थः-जो पुरुष अर्थ के वास्तवरूप को जानकर हित का उपदेश करने में कुशल है वह आप्त है । उसका वचन वर्ण, पद और वाक्यरूप होता है ।
मूलम्:- वर्णोऽकारादिः पौद्गलिकः, पदं सड़केतवत्, अन्योऽन्यापेक्षाणां पदानां समुदायो वाक्यम् ।
अर्थ:- पुद्गलों से उत्पन्न अकार आदि वर्ण है, सङ्केत से युक्त पद कहा जाता है । परस्पर की अपेक्षा करनेवाले पदों का समूह वाक्य हैं ।
विवेचनाः- नैयायिक वर्णों को आकाश का गुण मानता है । कुमारिल भट्ट का अनुगामी वर्णों को नित्य और व्यापक